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Ustad Zakir Hussain: संघर्ष से सफलता की ऊंचाई तक, तबले की थाप से दी दुनिया को एक नई पहचान

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Zakir Hussain

Ustad Zakir Hussain: उस्ताद जाकिर हुसैन, जिनका हाल ही में लंबी बीमारी के बाद अमेरिका में निधन हो गया, भारतीय शास्त्रीय संगीत के सबसे बड़े नामों में से एक थे। उनकी तबले की आवाज़ सुनते ही श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। एक साधारण जीवन जीते हुए, उन्होंने अपनी कला से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में धाक जमाई। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने अनगिनत संघर्षों का सामना किया। चलिए, जानते हैं उनकी जीवन यात्रा और उनके संघर्षों के बारे में:
पिता से विरासत में मिली कला, 11 साल की उम्र में पहला कॉन्सर्ट
जाकिर हुसैन का जन्म 9 मार्च 1951 को मुंबई में हुआ था। वह उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे थे, जिनकी तबला वादन में गहरी पकड़ थी। जाकिर को बचपन से ही संगीत का शौक था और उन्होंने महज तीन साल की उम्र में पखावज बजाना सीख लिया था। उनके पिता ने उन्हें तबले की कला सिखाई, और जब वह केवल 11 साल के थे, तो उन्होंने अमेरिका में अपना पहला कॉन्सर्ट दिया। यह उनकी यात्रा की शुरुआत थी, और इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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यात्राओं और संघर्षों से भरी थी शुरुआत
उस्ताद जाकिर हुसैन का संगीत यात्रा का सफर आसान नहीं था। छोटी सी उम्र में ही वह विभिन्न शहरों और देशों में अपने कॉन्सर्ट के लिए यात्रा करते थे। पैसे की कमी के कारण उन्हें आरक्षित बोगी में यात्रा करने का अवसर नहीं मिलता था। वे अक्सर ट्रेन की भीड़-भाड़ वाली बोगियों में सफर करते थे और अपना तबला अपनी गोदी में रखते थे, ताकि उस पर किसी का पैर न पड़े। कई बार उन्हें अपने परिवार से मिलने के लिए भी पैसे की कमी महसूस होती थी, और जब आर्थिक स्थिति बेहतर हुई, तब जाकर वह अपने परिवार से मिलने का समय निकाल पाते थे।
संगीत में उत्कृष्टता और सम्मान
जाकिर हुसैन का नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत में स्वर्ण अक्षरों से लिखा गया है। उनके योगदान ने तबले को न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया, बल्कि उसे एक वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी कला को पहचानते हुए, भारतीय सरकार ने उन्हें 1988 में पद्मश्री और 2002 में पद्मभूषण जैसे सम्मान दिए। इसके अलावा, 2009 में उन्हें संगीत का सर्वोच्च पुरस्कार ‘ग्रैमी अवॉर्ड’ भी मिला, जो उनके संगीत क्षेत्र में योगदान को मान्यता प्रदान करता है।
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सादगी और जुड़ाव
जाकिर हुसैन ने जितनी ऊंचाइयों को छुआ, उतनी ही सादगी से अपनी जिंदगी जी। वह कभी भी अपनी प्रसिद्धि से चुपके से दूर रहते थे और अपनी कला को सर्वोपरि मानते थे। उनकी संगीत यात्रा ने लाखों लोगों को प्रेरित किया, और उनकी प्रेरणा से संगीत का सफर एक नई दिशा में बढ़ा।
निरंतर संघर्ष और अद्वितीय योगदान
जब भी वह तबला बजाते थे, तो उनकी उंगलियों की थाप श्रोताओं को एक नई दुनिया की सैर कराती थी। उनकी मेहनत और संघर्ष के बावजूद उन्होंने भारतीय संगीत को पूरी दुनिया में सम्मान दिलवाया। उनका यह योगदान आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रहेगा। उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है, लेकिन उनकी धरोहर, उनके संगीत की मिठास और उनकी सादगी हमें हमेशा प्रेरित करती रहेगी।
Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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