
नई दिल्ली. Manmohan Singh Death: 1991 का साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक ऐतिहासिक मोड़ था। यह वह समय था जब भारत गहरे आर्थिक संकट से जूझ रहा था। तेल की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि, घटता हुआ विदेशी मुद्रा भंडार, और बढ़ता हुआ राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) भारतीय अर्थव्यवस्था को डूबने की कगार पर ले आए थे। स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी थी कि देश के पास केवल दो हफ्तों के आयात के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा बची थी।
लेकिन, ऐसे कठिन समय में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने साहसिक निर्णय लेकर भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकाला। ये निर्णय न केवल तत्कालीन आर्थिक संकट को हल करने में सहायक बने, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा और समृद्धि की ओर अग्रसर भी किया।
1991 का आर्थिक संकट: डिफॉल्ट के करीब भारत
उस समय भारत विदेशी कर्ज चुकाने की स्थिति में नहीं था। राजकोषीय घाटा 8% और चालू खाता घाटा (Current Account Deficit) 2.5% तक पहुंच चुका था। ऐसी स्थिति में विदेशी निवेशक भारत पर विश्वास खोने लगे थे और आर्थिक अस्थिरता का खतरा बढ़ रहा था। यदि तुरंत कोई कदम नहीं उठाए गए होते, तो देश को डिफॉल्ट (Default) का सामना करना पड़ सकता था।
साहसिक कदम: सोना गिरवी और रुपये का अवमूल्यन
डॉ. मनमोहन सिंह ने आर्थिक संकट से उबारने के लिए कई साहसिक कदम उठाए। भारतीय रिजर्व बैंक ने 67 टन सोना गिरवी रखकर लगभग 60 करोड़ डॉलर जुटाए। यह कदम तत्काल विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में मददगार साबित हुआ। इसके साथ ही, डॉ. सिंह ने रुपये का 20% अवमूल्यन किया, जिससे भारतीय निर्यात को वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिला। इस कदम से भारतीय उत्पादों को सस्ता और आकर्षक बना दिया गया, जिससे निर्यात में वृद्धि हुई।
व्यापक आर्थिक सुधार: लाइसेंस राज का अंत
भारत को इस संकट से उबारने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह ने अर्थव्यवस्था में कई बड़े सुधार किए। इन सुधारों ने भारतीय अर्थव्यवस्था के ढांचे को पूरी तरह से बदल दिया।
- व्यापार नीति में बदलाव: लाइसेंस राज की प्रणाली को समाप्त किया गया, जिससे आयात और निर्यात को सरल और पारदर्शी बनाया गया। व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप कम कर दिया गया, जिससे व्यापारिक स्वतंत्रता बढ़ी और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिला।
- औद्योगिक नीति का उदारीकरण: औद्योगिक नीतियों में सुधार करते हुए, निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण किया गया। इसके साथ ही, विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाकर 51% कर दी गई, जिससे विदेशी निवेशकों का विश्वास भारत में बढ़ा।
- राजकोषीय सुधार: देश के वित्तीय घाटे को कम करने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह ने सब्सिडी में कटौती की और टैक्स सुधार किए। इन उपायों ने सरकारी खर्चों को नियंत्रित किया और वित्तीय स्थिति को सुधारने में मदद की।
1991 का बजट: नई अर्थव्यवस्था की नींव
24 जुलाई 1991 को पेश किया गया बजट भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव का प्रतीक बना। इस बजट में टैक्स सुधार, म्यूचुअल फंड में निजी भागीदारी और विदेशी निवेश के लिए नए दरवाजे खोले गए। इससे भारतीय बाजार को वैश्विक स्तर पर पहचान मिली और देश में एक नई आर्थिक क्रांति की शुरुआत हुई।
मनमोहन सिंह: आधुनिक भारत के आर्थिक नायक
डॉ. मनमोहन सिंह की दूरदर्शिता और साहसिक नीतियों ने न केवल उस समय के संकट को टाला, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी। आज जो मजबूत भारतीय अर्थव्यवस्था हम देख रहे हैं, वह उन्हीं सुधारों की नींव पर खड़ी है। उनके योगदान ने यह साबित कर दिया कि सही निर्णय और दूरदृष्टि किसी भी संकट को अवसर में बदलने की क्षमता रखते हैं।
डॉ. मनमोहन सिंह की नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई पहचान दी, और उनका योगदान भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा। उनके नेतृत्व में किए गए सुधारों के कारण आज भारत दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है, और यही उनकी सबसे बड़ी धरोहर है। डॉ. मनमोहन सिंह का योगदान भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से बाहर निकालने और उसे वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में अतुलनीय है। उनके द्वारा किए गए साहसिक कदम और सुधारों ने भारतीय राजनीति और आर्थिक परिप्रेक्ष्य को स्थिर किया और समृद्धि की ओर अग्रसर किया।
