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Iron Ore Train in Mauritania: अफ्रीका की रेत में दौड़ती ‘आयरन मॉन्स्टर’ ट्रेन का खौफनाक सफर, जब 704 किमी तक रुकती नहीं ट्रेन, न सीट, न छत, फिर भी…

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Train Photo AI genereted
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Iron Ore Train in Mauritania: रेगिस्तान में तेज़ गर्म हवाओं के बीच एक काली रेखा सी दिखती है जो कहीं से आती है और कहीं चली जाती है। यह कोई सराब नहीं, बल्कि मॉरिटानिया की आयरन ओर ट्रेन है दुनिया की सबसे खतरनाक और सबसे लंबी मालगाड़ी, जिस पर लोग जान जोखिम में डालकर बैठते हैं। यह ट्रेन न तो यात्रियों के लिए बनी है, न ही इसमें कोई टिकट है — लेकिन इसके डिब्बों पर लोग लोहे की धूल के ढेर पर बैठकर 14 घंटे का जानलेवा सफर करते हैं।

कहां से कहां तक जाती है ये ट्रेन?

यह ट्रेन शुरू होती है ज़ौरात से जो मॉरिटानिया के उत्तर में, पश्चिमी सहारा की सीमा पर स्थित एक खनन क्षेत्र है। यह इलाका इतना खतरनाक है कि यहां अल-कायदा जैसे आतंकी समूह सक्रिय हैं। यह ट्रेन वहां से चलती है और अटलांटिक महासागर के तट पर स्थित नौआदीबू नामक बंदरगाह तक जाती है। कुल दूरी 704 किलोमीटर, यानी दिल्ली से लखनऊ के बीच की दूरी से भी ज्यादा।

ट्रेन जो खुद एक चलता-फिरता शहर है
  • कुल 3 किलोमीटर लंबी ट्रेन दुनिया की सबसे लंबी मालगाडिय़ों में से एक।
  • 200 डिब्बे, हर डिब्बे में लगभग 84 टन लौह अयस्क।
  • कम से कम दो इंजन इसे खींचते हैं, क्योंकि इतनी भारी ट्रेन को एक इंजन नहीं संभाल सकता।
सफर जिसमें सूरज आपका दुश्मन बन जाता है
  • यह ट्रेन सहारा रेगिस्तान से होकर गुजरती है दुनिया का सबसे बड़ा गर्म रेगिस्तान।
  • गर्मियों में तापमान 50एष्ट के पार चला जाता है।
  • ट्रेन में कोई छत नहीं होती, और डिब्बों के ऊपर बैठने वालों के लिए सिर पर बस आसमान होता है।
  • प्यास, धूल और गर्म हवाएं — सब कुछ इस यात्रा का हिस्सा है।
Train Photo AI genereted.
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कोई स्टेशन नहीं, कोई ब्रेक नहीं, कोई मदद नहीं
  • ट्रेन पूरे 704 किलोमीटर का सफर बिना रुके तय करती है।
  • इस रूट पर एक भी स्टेशन नहीं है।
  • अगर आप बीच में किसी मुसीबत में फंस जाएं, तो कोई मदद नहीं आती।
मॉरिटानिया: देश जो रेगिस्तान में बसा है

मॉरिटानिया का कुल क्षेत्रफल लगभग 10 लाख वर्ग किलोमीटर है यानी जर्मनी से तीन गुना बड़ा है। लेकिन यहां की आबादी सिर्फ 40 लाख के आसपास है। अधिकांश क्षेत्र में रेगिस्तान ही फैला है।

14 घंटे तक लोहे की गर्द में लिपटा सफर

इस ट्रेन को अपनी मंज़िल तक पहुंचने में लगभग 14 घंटे लगते हैं। जिन लोगों के पास सफर का कोई और साधन नहीं, वे मजबूरी में इस ट्रेन की खुली डिब्बियों में चढ़ जाते हैं। वे लोहे की धूल के ढेर पर बैठते हैं, चेहरा रुमाल से ढक लेते हैं, और बस यात्रा शुरू कर देते हैं।

क्यों है ये इतना खतरनाक?
  • आतंकी गतिविधियां ट्रेन ज़ौरात से शुरू होती है, जहां सुरक्षा स्थिति बेहद अस्थिर है।
  • कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं – ट्रेन में किसी प्रकार की मेडिकल या सुरक्षा सहायता मौजूद नहीं।
  • प्राकृतिक खतरे – गर्मी, धूलभरी आंधियां, डिहाइड्रेशन और गिरने का जोखिम।
इतिहास: कब से चल रही है ये ट्रेन?

यह ट्रेन 1963 में शुरू हुई थी, जब मॉरिटानिया की खदानों से लौह अयस्क निकालना शुरू किया गया। इसका उद्देश्य था खनिजों को समुद्री बंदरगाह तक पहुंचाना। लेकिन समय के साथ यह ट्रेन स्थानीय लोगों की एकमात्र यात्रा विकल्प भी बन गई।

यात्रियों के लिए नहीं, फिर भी लोग चढ़ते हैं
  • तकनीकी रूप से इस ट्रेन पर सवारी करना अवैध है।
  • लेकिन सरकार आंखें मूंदे रहती है क्योंकि वहां कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है।
  • यह लोगों की मजबूरी और हिम्मत दोनों का प्रतीक बन चुकी है।
Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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