
नई दिल्ली. Vice president Jagdeep Dhankad: देश में विधायिका और न्यायपालिका के रिश्तों को लेकर लंबे समय से जारी बहस एक बार फिर उफान पर है। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर अपनी साफगोई से सियासी और संवैधानिक हलकों में हलचल मचा दी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि “संसद ही सर्वोच्च है, उसके ऊपर कोई नहीं। जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि ही संविधान के अंतिम संरक्षक हैं और उन पर कोई भी प्राधिकरण हावी नहीं हो सकता।” यह बयान उस वक्त आया है जब भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के सुप्रीम कोर्ट पर विवादास्पद टिप्पणी को लेकर पहले ही राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। ऐसे में धनखड़ का यह वक्तव्य और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर तीखी टिप्पणी
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने अपने भाषण में सर्वोच्च न्यायालय के कई ऐतिहासिक निर्णयों की कड़ी आलोचना की। विशेषकर, उन्होंने 1975 में लगाए गए आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौलिक अधिकारों को निलंबित किए जाने को लोकतंत्र के साथ अन्याय करार दिया। उन्होंने कहा कि “आपातकाल भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दौर था। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने नौ उच्च न्यायालयों के निर्णयों को पलटते हुए नागरिकों के मौलिक अधिकारों को निलंबित करने का समर्थन किया था, जो न केवल दुर्भाग्यपूर्ण, बल्कि संविधान की आत्मा के विपरीत था।” धनखड़ ने यह भी आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना को लेकर अपने ही दो फैसलों में विरोधाभास पैदा किया है। इसके अलावा, उन्होंने अनुच्छेद 142 के हालिया प्रयोग को भी लोकतांत्रिक शक्तियों के लिए खतरा बताया।
अनुच्छेद 142 पर ‘परमाणु मिसाइल’ जैसी टिप्पणी
धनखड़ ने अनुच्छेद 142 को लेकर कहा कि “यह अनुच्छेद न्यायपालिका के हाथों में एक 24×7 परमाणु मिसाइल की तरह है, जिसे कभी भी किसी भी दिशा में दागा जा सकता है।” उन्होंने यह प्रतिक्रिया सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर समयसीमा में निर्णय लेने का निर्देश दिए जाने पर दी।
निशिकांत दुबे के बयान से जुड़ी बीजेपी की सफाई
धनखड़ का यह बयान उस समय आया है जब बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट पर न्यायिक अतिक्रमण का आरोप लगाया था। दुबे ने कहा था कि “अगर हर विषय में सुप्रीम कोर्ट को ही फैसला करना है, तो संसद और विधानसभाओं को ताला लगा देना चाहिए।” इस बयान की विपक्ष और कई संवैधानिक विशेषज्ञों ने तीखी आलोचना की। दबाव के बीच बीजेपी ने सफाई देते हुए कहा कि ये “व्यक्तिगत राय” है और पार्टी ऐसे विचारों से सहमत नहीं है।
संवैधानिक शक्तियों के संतुलन पर नई बहस
धनखड़ और दुबे के बयानों ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन को लेकर एक बार फिर गंभीर बहस को जन्म दे दिया है। जहां धनखड़ इसे “राष्ट्रीय हित में दिया गया बयान” मानते हैं, वहीं कई संवैधानिक जानकारों का कहना है कि इस तरह के वक्तव्य संवैधानिक संस्थानों की गरिमा को ठेस पहुंचा सकते हैं और लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर सकते हैं।
