
नई दिल्ली. India Pakistan Tension: भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से चला आ रहा तनाव अब किसी परिचय का मोहताज नहीं है। परंतु इस लंबे तनाव में एक तीसरा खिलाड़ी अब लगातार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है तुर्की। हाल ही में जब भारत ने जम्मू-काश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर नाम से सैन्य अभियान चलाया, तो दुनिया के तमाम देशों ने संयम और बातचीत की सलाह दी, परंतु तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का खुलकर पक्ष लिया। न केवल बयानबाजी की, बल्कि हथियारों और सैन्य सहायता के रूप में भी उनकी भागीदारी सामने आई। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर तुर्की बार-बार पाकिस्तान के पक्ष में क्यों खड़ा हो जाताह ै? क्या सिर्फ इस्लामी भाईचारा ही वजह है? या फिर इसके पीछे कुछ और गहरी वजहें छिपी है? यह रिपोर्ट एआई की मदद से पर्दा उठाने का प्रयास है।
1. घटनाक्रम की शुरुआत: ऑपरेशन सिंदूर और तुर्की की प्रतिक्रिया
पहलगाम क्षेत्र में अप्रेल 2025 में घूमने 26 पर्यटकों को जान से मार दिया गया। इसके बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर नामक सैन्य कार्रवाई की शुरूआत की, जिससे सीमा पार स्थित आतंकी संगठनों के ठिकानों को निशाना बनाया गया। इस कार्रवाई को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भारत का आत्मरक्षा में उठाया कदम माना। लेकिन तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने तुरंत पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि हम पाकिस्तान के लोगों के साथ खड़ें हैं। वे हमारे भाई हैं। तुर्की हमेशा उनके साथ रहेगा। अर्दोआन का यह बयान न केवल भारत विरोधी माना गया, बल्कि इससे अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई कि तुर्की बार-बार पाकिस्तान की पीठ थपथपाता है।
2. तुर्की-पाकिस्तान: रक्षा सहयोग की मजबत होती साझेदारी
तुर्की और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ वर्षों में रक्षा सहयोग उल्लेखनीय रूप से बढ़ा है। कुछ अहम सझौते निम्रलिखित हैं:-
A. T-129 ATAK हेलीकॉप्टर सौदा तुर्की की कंपनी टर्की एयरोस्पेश इंण्डस्ट्रीज ने पाकिस्तान को 30 ATAK हेलीकॉप्टर बेचने का सौदा 1.5 बिलियन डॉलर में किया। हालांकि अमेरिका से इंजन एक्सपोर्ट की मंजूरी में अड़चने आई, फिर भी यह सौदा तुर्की के लिए पाकिस्तान के साथ रिश्ते मजबूत करने का जरिया बना।
B. ड्रोन तकनीक ओर ट्रांसफर: तुर्की की BAYKAR कंपनी की ओर से बनाए गए BAYAKTAR TB 2 ड्रोन आज यूके्रेन युद्ध में कारगर साबित हो चुके हैं। पाकिस्तान ने भी इन ड्रोन में गहरी रुचि दिखाई है और प्रशिक्षण भी प्रापत किया है।
C. युद्धपोत और मरीन तकनीक: तुर्की, पाकिस्तान को चार MILGEM प्रकार के युद्धपोत बनाकर दे रहा है। इन पोतों का निर्माण आंशिक रूप से पाकिस्तान में हो रहा है, जिससे उसकी नेवी क्षमता बढ़ रही है। यह सहयोग तुर्की के लिए केवल रनणनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक भी है। पाकिस्तान एक ऐसा बाजार है, जहां तुर्की को अपने बढ़ते रक्षा उत्पादों के लिए ग्राहक मिल रहे हैं।
3. मुस्लिम नेृत्व की चाह: अर्दोआन की उम्मा राजनीति
रेचेप तैय्यप अर्दोआन केवल तुर्की के राष्ट्रपति नहीं, बल्कि खुद को वैश्विक इस्लामी नेतृत्व के प्रतीक के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। सउदी अरब और ईरान के बीच वर्चस्व की लड़ाई में अर्दोआन ने तीसरे विकल्प के रूप में उभरने का प्रयास किया।
ए. ओआईसी में भारत विरोध
इस्लामिक सहयोग संगठन की बैठकों में तुर्की ने बार-बार कश्मीर मुद्दे को उठाया है। खासकर अगस्त 2019 में जब अनुच्छेद 370 हटाया गया, तब तुर्की ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ करार दिया था।
बी. भारत के खिलाफ भाषण
2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अर्दोआन ने कश्मीर का उल्लेख करते हुए भारत पर अन्याय और उत्पीडऩ का आरोप लगाया गया था। यह पहली बार नहीं था जब उन्होंने इस मंच पर भारत के खिलाफ बोला। उनका उद्देश्य सिर्फ पाकिस्तान को खुश करना नहीं है, बल्कि मुस्लिम जगहों में भारत विरोधी भावना के जरिए नेतृत्व का दावा करना भी है।
4. भारत से तुलना और ईष्र्या मनोविज्ञान
2014 में नरेन्द्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने, और उसी वर्ष अर्दोआन तुर्की के राष्ट्रपति बने। दोनों नेताओं ने वैश्विक मंचों पर अपनी-अपनी उपस्थिति बढ़ार्ठ, लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रभाव के मामले में मोदी स्पष्ट रूप से आगे रहे।
ए. भारत का वैश्विक उदय
भारत जी 20, क्यूयूएडी और ब्रिक्स जैसे मंचों का प्रभावशाील सदस्य है। तुर्की भले ही नाटो सदस्य है, लेकिन उसे ब्रिक्स या क्वाड जैसे वैश्विक मंचों पर भारत जैसी अहमियत कभी नहीं मिली।
बी. रक्षा उत्पादन में भारत की आत्म निर्भरत
भारत ने अपने रक्षा क्षेत्र में जबरदस्त आत्म निर्भरता हासिल की है। भारत अब खुद ड्रोन, मिसाइल, लडाकू टैंक और अर्ध-स्वचालित हथियार बना रहा है। अर्दोआन जानते हैं कि भारत कभी भी तुर्की के हथियार नहीं खरीदेगा। ऐसे में पाकिस्तान जैसे देशों को ग्राहक बनाना उनके लिए एकमात्र व्यावसायिक रास्त है।
5. हिंद महासागर में तुर्की की नजरें
तुर्की का रणनीतिक विस्तार अब केवल मिडल ईस्ट या यूरोप तक सीमित नहीं रहा है। अर्दोआन ने ब्लूहोमलैंड डॉक्ट्रिन के तहत समुद्री शक्ति को विस्तार की नीति बनाई है। जिसमें हिंदमहासागर भी शामिल है।
ए. पाकिस्तान के बंदरगाहों तक पंहुच
पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट चीन की ओर से विकसित किया जा रहा है, लेकिन तुर्की भी यहां रणनीतिक पहुंच बनाना चाहता है। हिंद महासागर में भारत की नौसेना दबदबा रखती है और तुर्की को इसका मुकाबला करने ेक लिए एक सहयोगी की जरूरत है जो पाकिस्तान ही हो सकता है।
बी. जॉंइंट नेवल एक्सरसाइज
पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान और तुर्की ने मिलकर कई नौसैनिक अभ्यास किए हैं। इससे साफ हो गया है कि तुर्की हिंद महासागर में सैन्य उपस्थिति बनाना चाहता है।
6. भारत और तुर्की के बीच व्यापारिक संबंध कमजोर क्यों?
भारत और तुर्की के बीच 2023 में कुल व्याापार मात्र 12 बिलियन डॉलर रहा, जबकि भारत और यूएई या भारत और सऊदी अरब का व्यापार 70 बिलियन डॉलर से अधिक है। इसके पीछे कई कारण हैं:-
1. राजनीतिक विश्वास की कमी
2. कश्मीर पर तुर्की का आलोचनात्मक रूख
3. तुर्की का चीन और पाकिस्तान के साथ गहराता रिश्ता
भारत ने तुर्की से हथियार खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और न ही उसकी कूटनीतिक चालों का समर्थन किया। इसके जवाब में तुर्की ने भारत के विरोधियों के साथ हाथ मिलाना शुरू कर दिया।
7. रणनीतिक संतुलन: भारत का जवाब
भारत ने तुर्की के रवैये का जवाब संयम से दिया है, लेकिन अपने रक्षा और कूटनीतिक समीकरणों में बदलाव किया है।
1. ग्रीस और आर्मेनिया से रिश्ते सुधारना, जो तुर्की के परंपरागत विरोधी हैं।
2. इजराइल से रक्षा समझौते मजबूत करना।
3. मध्य एशिया और अफ्रीकी देशों में प्रभाव बढ़ाना
8. क्या तुर्की को मिलेगा मुनाफा
तुर्की पाकिस्तान परस्त नीति से उसे अल्पकालिक आर्थिक और सामरिक लाभ तो मिल सकता है, लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण से यह नीति नुकसानदायक भी हो सकती है। भारत जैसे बड़े बाजार और स्थिर साझेदार को खोकर तुर्की सिर्फ एक अस्थिर और आर्थिक रूप से कमजोर देश पर निर्भर हो रहा है। रेचेप तैय्यप अर्दोआन की महत्वकांक्षा उन्हें इस्लामी दुनिया का अगुवा बनाना चाहती है, लेकिन इस राह में भारत जैसे लोकतांत्रिक और तकनीकी रूप से समृद्ध राष्ट्र से टकराव उन्हे कूटनीतिक रूप में अलग-अलग भी कर सकता है।
धर्म के नाम पर रानीति , पर असल खेल अर्थनीति
तुर्की और पाकिस्तान की निकटता को केवल इस्लामी एकता का नाम देना बड़ी भूल होगी। इसके पीछे छिपा है मुनाफे का गणित, वैश्विक मंचों पर प्रतिस्पद्र्धा और रणनीतिक समुद्री विस्तार की योजना। अर्दोआन भले ही सोशल मीडिया पर पाकिस्तान को भाई कहें, पर उनके लिए यह भाईचारा एक बिजनेस डील से ज्यादा कुछ नहीं है।
