
नई दिल्ली. Israel PM Netanyahu: पश्चिम ऐशिया में एक बार फिर बड़ा भूचाल आने की आशंक जताई जा रही है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने हाल ही में ऐसी जानकारियां एकत्रित की है, जिनसे संकेत मिलते हैं कि इजरायल संभवत: ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले की तैयारी कर रहा है। सीएनएन ने कई अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से यह दावा किया है, जिनका कहना है कि इजरायल इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। फिलहाल इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि इजरायली नेतृत्व ने हमले का अंतिम निर्णय लिया है या नहीं। लेकिन अमेरिका के भीतर भी इस मुद्दे को लेकर मतभेद हैं, कुछ अधिकारियों का मानना है कि इजरायल सिर्फ दबाव बनाने की रणनीति अपना रहा है, तो कुछ का कहना ळै कि स्थिति वाकई गंभीर है।
खुफिया रिपोर्ट में क्या?
सीएनएन रिपोर्ट के अनुसार, जिन सूचनाओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है, उनमें इजरायली नेताओं के सार्वजनिक और गोपनीय बयानों के साथ-साथ सैन्य गतिविधियों और इंटरसेप्टेड कम्युनिकेशन शामिल है। रिपोर्ट कहती है कि इजरायली सैन्य इकाईयों की हलचल, हथियारों की तैनाती और रणनीतिक बैठकें इस ओर इशारा करती है कि एक बड़ा ऑपरेशन विचाराधीन है। एक अधिकारी ने सीएनएन को बताया कि ईरान के खिलाफ सैन्य हमले की संभावना हाल के महीनों में कफी बढ़ गई है, खासकर उस स्थिति में अगर अमेरिका और ईरान के बीच ऐसा कोई समझौता हो जाए जिससे ईरान को अपनी यूरेनियम भंडारण की कुछ मात्रा रख्चाने की इजाजत मिले।
इजरायल ओर अमेरिका की प्रतिक्रिया
इजरायली सरकार और वॉशिंगटन स्थित इजरायली दूतावास ने इस रिपोर्ट पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। वहीं, व्हाइट हाउस का राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद भी इस पर मौन है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार की चुप्पी अक्सर तब देखने को मिलती है जब कोई बड़ा सैन्य ऑपरेशन प्लानिंग स्टेज में होता है, और सरकारें इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना नहीं चाहती।
ट्रंप का कड़ा रूख और धमकी भरी चिटठी
हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर आक्रामक बयान दे चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार मार्च में ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई को सीधे एक पत्र लिखा था जिसमें उनहोंने 60 दिनों में की समय सीमा दी थी कि अगर बतचीत में कोई ठोस प्रगति नहीं हुई तो अमेरिका सैन्य विकल्पों पर विचार करेगा। अब वह समयसीमा समाप्त हो चुकी है और रिपोर्ट के मुताबिक दो महीने बीतने के बावजूद ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। ट्रंप का स्पष्ट संकेते है कि वे इस विष्ज्ञय पर अब और प्रतीक्षा करने के मूड में नहीं है।
खामेनेई का पलटवार: अमेरिका की मांगे अनुचित
दूसरी ओर, ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिका पर तीखा हमला बोला है। ईरानी सरकारी मीडिया के अनुसार खामेनेई ने कहा कि अमेरिका की यह मांग कि ईरान यूरेनियम संवर्धन को पूरी तरह बंद कर, अत्यधिक और अनुचित है। उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें नहीं लगता कि बातचीत किसी ठोस समझौत की ओर बढ़ रही है। उनके मुताबिक अमेरिका की नीयत पर भरोसा करना मुश्किल है और परमाणु बातचीत में आगे बढऩे की संभावना बेहद कम है।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम और अंतर्राष्ट्रीय चिंता
ईरान का परमाणु कार्यक्रम पिछले कई वर्षों से वैश्विक तनाव केन्द्र बना हुआ है। अमेरिका, इजरायल और अन्य पश्चिम देश आशंका जता रहे है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित कर सकता है, जबकि ईरान का दावा ळे कि उसका कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हैँ। 2015 में जोईंट कम्प्रेहैंसिव प्लान ऑफ एक्शन जिसे ईरान परमाणु समझौते के रूप में माना जाता है-ट्रंप प्रशासन की ओर से 2018 में एकतरफा रूप से तोड़ दिया गया था। इसके बाद से स्थिति और भी जटिल होती चली गई।
सैन्य गतिविधियां: क्या वाकई युद्ध की आहट?
रिपोर्ट में कहा गया है कि हाल के हफ्तों में इजरायली सेना की गतिविधि बढ़ी है। विशेषकर, वायुसेना के कुछ दस्तों को विशेष अभ्यास में लगाया गया है, जो लंबी दूरी तक मार करने वाले ऑपरेशन के लिए जाने जाते हैं, साथ ही, इजरायल के कुछ फाइटर जेटों की गतिविधियों पर उपग्रह से नजर रखी जा रही है और उसमें भी बढ़ोतरी देखी गई है। विश्लेषकों का मानना ळे कि यह तैयारी सिर्फ दबाव बनाने के लिए नहीं, बल्कि एक वास्तविक ऑपरेशन की पूर्व तैयारी भी हो सकती है।
राजनयिक प्रयासों पर ग्रहण
जहां एक ओर कुछ देश अब कूटनीतिक समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इजरायल की संभावित सैन्य कार्रवाई इन प्रयासों को असपल कर सकती है। अमेरिका के अंदर भी इस मुद्दे को लेकर गंभीर बहस चल रही है कि एक तरफ खुफिया रिपोर्ट है जो बढ़ते खतरे की ओर इशारा कर रही है, और दूसरी तरफ रणनीतिक धैर्य और संवाद की वकालत करने वाले वर्ग हैं।
आगे क्या? संभावनाएं और चुनौतियां
अगर हमला होता है तो पूरी पश्चिम एशिया हिंसा की चपेट में आ सकता है। लेबनान में हिज्बुल्ला, गाजा में हमास और यमन में हूथी विद्रोही समूह, ईरान के सहयोगी माने जाते हैं, जो बदले की कार्रवाई कर सकते हैं।
अगर बातचीत टूटती है तो ईरान संभवत: अपने परमाणु कार्यक्रम को और तेजी से आगे बढ़ा सकता है, जिससे तनाव और बढ़ेगा।
अगर समझौता होता है तो इसमें क्षेत्र में थोड़ी स्थिरता आ सकती है, लेकिन इजरायल इस समझौते को स्वीकार करे, इसकी गारंटी नहीं है।
JCPOA क्या है?
JCPOA (संयुक्त व्यापक कार्य योजना) एक परमाणु समझौता है जो 2015 में ईरान और विश्व के 6 शक्तिशाली देशों (P5+1) के बीच हुआ था।
ये छह देश हैं:
- अमेरिका
- ब्रिटेन
- फ्रांस
- रूस
- चीन
- जर्मनी
इस समझौते का मकसद था कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करेगा, ताकि वह परमाणु बम न बना सके, और बदले में उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंध हटा दिए जाएंगे।
ईरान को क्या करना था जेसीपीओए के तहत?
- यूरेनियम संवर्धन सीमित करना
- ईरान को सिर्फ 3.67 प्रतिशत तक यूरेनियम संवर्धन की इजाज़त थी, जबकि परमाणु हथियार के लिए 90 प्रतिशत से ऊपर यूरेनियम चाहिए होता है।
- सेंट्रीफ्यूज की संख्या घटाना
- ये मशीनें यूरेनियम संवर्धन में इस्तेमाल होती हैं। ईरान को इन्हें सीमित करना पड़ा।
- फोर्डो और नतान्ज जैसे परमाणु स्थलों की निगरानी
- अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को ईरानी परमाणु स्थलों का निरीक्षण करने की अनुमति दी गई।
- यूरेनियम भंडार सीमित करना
- ईरान सिर्फ 300 किलोग्राम कम संवर्धित यूरेनियम ही जमा कर सकता था।
बदले में ईरान को क्या मिला?
- अमेरिका और यूरोपीय देशों ने आर्थिक प्रतिबंध हटाए।
- ईरान को तेल बेचने, व्यापार करने और विदेशी पूंजी लाने की छूट मिली।
- अरबों डॉलर की जमा राशि जो प्रतिबंधों के चलते फ्रीज़ थी, वह वापस मिली।
फिर क्या हुआ?
2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को जेसीपीओए से बाहर निकाल लिया। ट्रंप ने आरोप लगाया कि: यह समझौता ईरान को धोखे से परमाणु हथियार बनाने की छूट देता है। ईरान क्षेत्र में आतंकवाद को समर्थन दे रहा है। इसके बाद अमेरिका ने फिर से कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। जवाब में ईरान ने भी धीरे-धीरे समझौते की शर्तें तोडऩी शुरू कर दीं।
