विध्वंस से सृजन तक के साक्षी रहे आचार्य दास
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा: एक ऐतिहासिक क्षण
साधारण जीवन, अद्भुत सेवा
अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि
रामलला की सेवा में हर क्षण जिया, खुशियों के आंसू और दुखों की कहानियां”
रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक संघर्ष और समर्पण की अनूठी कहानी है। बाबरी विध्वंस से लेकर राममंदिर के निर्माण तक का उनका यात्रा एक साक्षी है, जिसने केवल रामलला की पूजा नहीं की, बल्कि उनके दु:ख और संघर्ष को भी अपनी आंखों से देखा। सत्येंद्र दास का जीवन रामलला के प्रति अनगिनत समर्पण और भक्ति से भरा हुआ था।
टेंट में रामलला के दुखों का अनुभव
आचार्य सत्येंद्र दास के लिए रामलला की सेवा सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि उनका जीवन बन चुकी थी। वह उन कठिन दिनों के साक्षी थे जब रामलला को टेंट में सर्दी, गर्मी और बारिश का सामना करना पड़ता था। उन दिनों में रामलला की स्थिति देखकर उनका दिल टूट जाता था। वह कई बार रामलला के दुर्दिनों को देखकर आंसू बहाते थे। एक वह भी दौर था जब रामलला को सालभर में एक सेट नवीन वस्त्र मिलते थे और पूजा-अर्चना के लिए भी अनुमति की जरूरत होती थी।
प्राण प्रतिष्ठा के समय छलके खुशी के आंसू
लेकिन, समय बदला और राम मंदिर का सपना साकार हुआ। जब रामलला के लिए भव्य मंदिर बना और उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई, तो आचार्य दास की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। 32 वर्षों से रामलला की सेवा में लगे आचार्य दास ने उस पल को देखा, जिसका सपना उन्होंने वर्षों तक देखा था। यह पल उनके जीवन का सबसे ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण था।
आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत और रामलला के साथ यात्रा
आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक साधक के रूप में शुरू हुआ था। उन्होंने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की और अगले साल 1976 में अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करना शुरू किया। 1992 में, जब बाबरी विध्वंस से कुछ समय पहले ही रामलला की पूजा के लिए उनका चयन हुआ, तब से उन्होंने रामलला की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।
वह रामलला के पहले मुख्य पुजारी बने, जिन्होंने उनके साथ हर कठिनाई और संघर्ष का सामना किया। आचार्य दास ने करीब चार साल तक अस्थायी मंदिर में रामलला की सेवा की और फिर भव्य मंदिर के निर्माण के बाद से रामलला के मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवा जारी रखी।
बाबरी विध्वंस: संकट के दौरान रामलला की रक्षा
आचार्य दास के साथ सहायक पुजारी के रूप में कार्य करने वाले प्रेमचंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि जब बाबरी विध्वंस हुआ, तो आचार्य सत्येंद्र दास रामलला के विग्रह को सुरक्षित करने में जुट गए थे। सुबह 11 बजे का समय था, मंच पर लाउडस्पीकर से घोषणाएं हो रही थीं। उस वक्त नेताओं ने पुजारी से कहा कि रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। आचार्य दास ने भोग चढ़ाने के बाद पर्दा लगा दिया। अगले दिन, जब कारसेवकों को सरयू से जल लाने की बात कही गई, तो वहां सब कुछ असामान्य था। अचानक, कुछ नवयुवकों ने नारे लगाते हुए बैरिकेडिंग तोड़ी और विवादित ढांचे की ओर बढ़ गए। इस बीच, आचार्य दास ने रामलला और उनके चारों भाइयों के विग्रह को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया, जिससे उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।
सत्येंद्र दास का समर्पण और अडिग विश्वास
आचार्य सत्येंद्र दास ने हमेशा रामलला के प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा को निभाया। उन्होंने एक बयान में कहा था, “मैंने रामलला की सेवा में लगभग तीन दशक बिता दिए हैं और आगे भी जब तक मौका मिलेगा, तब तक उनका ही सेवा करूंगा।” उनका यह समर्पण रामलला के प्रति उनकी अद्वितीय आस्था का प्रतीक था।
आध्यात्मिक यात्रा का समापन
सत्येंद्र दास के जीवन का यह अध्याय सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि यह रामलला के संघर्ष और विजय की गाथा भी थी। उनका समर्पण, संघर्ष और खुशी के आंसू सदैव राम मंदिर के इतिहास का अभिन्न हिस्सा बनकर रहेंगे। रामलला के प्रति उनका प्यार और आस्था कभी नहीं खत्म होगी, और उनकी सेवा की यह कहानी हमेशा आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी। उनकी यादें, उनकी पूजा की विधियां, और रामलला के प्रति उनका समर्पण, राम मंदिर के हर पत्थर और दीवार में हमेशा जीवित रहेंगी।
