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Acharya Satyendra Das: जिन्होंने विध्वंस भी देखा और सृजन के भी रहे साक्षी

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Acharya Satyendra Das

अयोध्या. Acharya Satyendra Das:  श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास का निधन बुधवार को लखनऊ के एसजीपीजीआई अस्पताल में हुआ। 87 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मौत ने न केवल रामनगरी को गहरे शोक में डुबो दिया, बल्कि समूचे धार्मिक समुदाय में एक अपूरणीय शून्य छोड़ दिया है। आचार्य दास के निधन से राम मंदिर आंदोलन की लंबी और संघर्षपूर्ण यात्रा के एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया है।
विध्वंस से सृजन तक के साक्षी रहे आचार्य दास
आचार्य सत्येन्द्र दास का जीवन सिर्फ एक पुजारी का नहीं था, बल्कि वह एक ऐसे युग के गवाह थे, जिसने अयोध्या की भूमि को एक नया आकार और पहचान दी। बाबरी मस्जिद के विध्वंस से लेकर राम मंदिर के निर्माण तक, आचार्य दास रामलला की पूजा-अर्चना के मुख्य कर्ता-धर्ता रहे। उनके सामने राम जन्मभूमि विवाद का हर पहलू था – संघर्ष, शांति की कामना, और अंततः सृजन की उम्मीद। 1992 में जब राम जन्मभूमि आंदोलन अपने चरम पर था, और विवादित भूमि के प्रशासनिक अधिकार जिला प्रशासन के पास चला गया, तब आचार्य दास को राम मंदिर की सेवा के लिए नियुक्त किया गया। उस वक्त वे अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए न केवल रामलला की पूजा करते थे, बल्कि अपने समर्पण और साधना के साथ आंदोलन में भी सक्रिय रहे।
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा: एक ऐतिहासिक क्षण
28 साल तक टेंट में रामलला की पूजा करने के बाद, जब मंदिर निर्माण का सपना साकार हुआ, तो आचार्य दास उस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने, जब श्रीराम के चरणों में प्राण प्रतिष्ठा का कार्य हुआ। उन्होंने रामलला की पूजा की, उन्हें भव्य मंदिर में विराजित होते देखा और उनके साथ कई यादगार क्षण बिताए। आचार्य दास ने न केवल प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन किया, बल्कि हर पल इस ऐतिहासिक यात्रा का हिस्सा बनने का सौभाग्य प्राप्त किया। उनके जीवन का हर एक दिन रामलला के लिए समर्पित था।
साधारण जीवन, अद्भुत सेवा
आचार्य दास ने सादगी और तपस्वी जीवन जीते हुए, रामलला की सेवा में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया। 1992 में जब उन्हें राम जन्मभूमि में सेवा के लिए नियुक्त किया गया, तो उनका मासिक वेतन मात्र 100 रुपये था। वह समय था जब राम जन्मभूमि पर विवाद गहराया हुआ था, और आचार्य दास ने इस चुनौतीपूर्ण समय में अपनी जिम्मेदारियों को निभाया। हालांकि, समय के साथ उनकी सेवा और योगदान को पहचान मिली और 2019 में उनका वेतन बढ़कर 13,000 रुपये किया गया। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद, उनका वेतन 38,500 रुपये हो गया। इस दौरान उन्होंने केवल 14 पुजारियों के साथ राम मंदिर में सेवाएं दी। आचार्य दास का जीवन यह दर्शाता था कि सच्ची श्रद्धा और सेवा का कोई मूल्य नहीं होता, यह एक साधना है, जो अंततः समर्पण के रूप में अपने पूरे रूप में दिखती है।
अंतिम संस्कार और श्रद्धांजलि
आचार्य दास के निधन के बाद, उनका अंतिम संस्कार कल अयोध्या के सरयू नदी के किनारे किया जाएगा, जो उनकी आत्मा को शांति देने का स्थान होगा। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के प्रमुख और अन्य धार्मिक नेता उनके योगदान को हमेशा याद करेंगे। उनके बिना राम मंदिर की यात्रा अधूरी रहेगी, लेकिन उनकी आत्मा सदैव रामलला की पूजा में जीवित रहेगी। आचार्य सत्येन्द्र दास का जीवन एक प्रेरणा है, जिसने हमें यह सिखाया कि जीवन का असली उद्देश्य सेवा और समर्पण में छिपा है। वे सिर्फ एक पुजारी नहीं थे, बल्कि रामलला के प्रति अपनी अनन्य भक्ति और समर्पण के प्रतीक थे। उनका योगदान राम जन्मभूमि के आंदोलन और मंदिर निर्माण में अमूल्य रहेगा।
रामलला की सेवा में हर क्षण जिया, खुशियों के आंसू और दुखों की कहानियां”

रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक संघर्ष और समर्पण की अनूठी कहानी है। बाबरी विध्वंस से लेकर राममंदिर के निर्माण तक का उनका यात्रा एक साक्षी है, जिसने केवल रामलला की पूजा नहीं की, बल्कि उनके दु:ख और संघर्ष को भी अपनी आंखों से देखा। सत्येंद्र दास का जीवन रामलला के प्रति अनगिनत समर्पण और भक्ति से भरा हुआ था।

टेंट में रामलला के दुखों का अनुभव

आचार्य सत्येंद्र दास के लिए रामलला की सेवा सिर्फ एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि उनका जीवन बन चुकी थी। वह उन कठिन दिनों के साक्षी थे जब रामलला को टेंट में सर्दी, गर्मी और बारिश का सामना करना पड़ता था। उन दिनों में रामलला की स्थिति देखकर उनका दिल टूट जाता था। वह कई बार रामलला के दुर्दिनों को देखकर आंसू बहाते थे। एक वह भी दौर था जब रामलला को सालभर में एक सेट नवीन वस्त्र मिलते थे और पूजा-अर्चना के लिए भी अनुमति की जरूरत होती थी।

प्राण प्रतिष्ठा के समय छलके खुशी के आंसू

लेकिन, समय बदला और राम मंदिर का सपना साकार हुआ। जब रामलला के लिए भव्य मंदिर बना और उनकी प्राण प्रतिष्ठा की गई, तो आचार्य दास की आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े। 32 वर्षों से रामलला की सेवा में लगे आचार्य दास ने उस पल को देखा, जिसका सपना उन्होंने वर्षों तक देखा था। यह पल उनके जीवन का सबसे ऐतिहासिक और भावनात्मक क्षण था।

आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत और रामलला के साथ यात्रा

आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन एक साधक के रूप में शुरू हुआ था। उन्होंने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री हासिल की और अगले साल 1976 में अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में सहायक शिक्षक के रूप में कार्य करना शुरू किया। 1992 में, जब बाबरी विध्वंस से कुछ समय पहले ही रामलला की पूजा के लिए उनका चयन हुआ, तब से उन्होंने रामलला की सेवा में अपना जीवन समर्पित कर दिया।

वह रामलला के पहले मुख्य पुजारी बने, जिन्होंने उनके साथ हर कठिनाई और संघर्ष का सामना किया। आचार्य दास ने करीब चार साल तक अस्थायी मंदिर में रामलला की सेवा की और फिर भव्य मंदिर के निर्माण के बाद से रामलला के मुख्य पुजारी के रूप में अपनी सेवा जारी रखी।

बाबरी विध्वंस: संकट के दौरान रामलला की रक्षा

आचार्य दास के साथ सहायक पुजारी के रूप में कार्य करने वाले प्रेमचंद्र त्रिपाठी बताते हैं कि जब बाबरी विध्वंस हुआ, तो आचार्य सत्येंद्र दास रामलला के विग्रह को सुरक्षित करने में जुट गए थे। सुबह 11 बजे का समय था, मंच पर लाउडस्पीकर से घोषणाएं हो रही थीं। उस वक्त नेताओं ने पुजारी से कहा कि रामलला को भोग लगा दें और पर्दा बंद कर दें। आचार्य दास ने भोग चढ़ाने के बाद पर्दा लगा दिया। अगले दिन, जब कारसेवकों को सरयू से जल लाने की बात कही गई, तो वहां सब कुछ असामान्य था। अचानक, कुछ नवयुवकों ने नारे लगाते हुए बैरिकेडिंग तोड़ी और विवादित ढांचे की ओर बढ़ गए। इस बीच, आचार्य दास ने रामलला और उनके चारों भाइयों के विग्रह को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर दिया, जिससे उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।

सत्येंद्र दास का समर्पण और अडिग विश्वास

आचार्य सत्येंद्र दास ने हमेशा रामलला के प्रति अपनी निष्ठा और श्रद्धा को निभाया। उन्होंने एक बयान में कहा था, “मैंने रामलला की सेवा में लगभग तीन दशक बिता दिए हैं और आगे भी जब तक मौका मिलेगा, तब तक उनका ही सेवा करूंगा।” उनका यह समर्पण रामलला के प्रति उनकी अद्वितीय आस्था का प्रतीक था।

आध्यात्मिक यात्रा का समापन

सत्येंद्र दास के जीवन का यह अध्याय सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं थी, बल्कि यह रामलला के संघर्ष और विजय की गाथा भी थी। उनका समर्पण, संघर्ष और खुशी के आंसू सदैव राम मंदिर के इतिहास का अभिन्न हिस्सा बनकर रहेंगे। रामलला के प्रति उनका प्यार और आस्था कभी नहीं खत्म होगी, और उनकी सेवा की यह कहानी हमेशा आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगी। उनकी यादें, उनकी पूजा की विधियां, और रामलला के प्रति उनका समर्पण, राम मंदिर के हर पत्थर और दीवार में हमेशा जीवित रहेंगी।

Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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