
नई दिल्ली. China Hypersonic Missile: चीन ने एक ऐसा सैन्य कारनामा कर दिखाया है, जो वैश्विक सामरिक संतुलन को हिला सकता है। अब तक केवल विज्ञान कथाओं में दिखने वाले अंतरिक्ष से दागी जाने वाली मिसाइलें अब वास्तविकता बन चुकी हैं। दक्षिण चीन मॉर्निंग पोस्ट की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने ऐसी हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक विकसित कर ली है जिसे सीधे अंतरिक्ष से लॉन्च किया जा सकता है। इस तकनीक के साथ चीन के पास अब ऐसी शक्ति है, जिससे पारंपरिक वायु रक्षा प्रणालियाँ बेअसर हो सकती हैं। इस तकनीकी छलांग को कई विशेषज्ञ च्चीन का ब्रह्मास्त्र मान रहे हैं, जिसकी तुलना प्राचीन भारतीय महाकाव्य महाभारत में वर्णित परम अस्त्र से की जा रही है। यह तकनीक भारत, अमेरिका और अन्य शक्तिशाली राष्ट्रों के लिए एक गंभीर सामरिक चुनौती के रूप में उभर सकती है।
क्या है चीन की नई अंतरिक्षीय सैन्य क्षमता का सारांश ?
चीन की यह मिसाइल तकनीक “हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल” पर आधारित है, जो पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों से काफी अलग और ज्यादा उन्नत है। इस तकनीक की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- स्पीड: ये मिसाइलें मैक 20 की गति (ध्वनि की गति से 20 गुना तेज़) से उड़ान भरती हैं।
- लॉन्च प्लेटफॉर्म: इन्हें पृथ्वी पर स्थित लॉन्च बेस से नहीं बल्कि स्पेस स्टेशन या ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म से दागा जा सकता है।
- ट्रैजेक्टरी (पथ): पारंपरिक मिसाइलें एक निश्चित आर्क में उड़ती हैं, लेकिन हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल्स का पथ बेहद जटिल और अप्रत्याशित होता है, जिससे इन्हें इंटरसेप्ट करना मुश्किल होता है।
- रिमोट कंट्रोल सिस्टम: पृथ्वी पर स्थित कमांड सेंटर से इन मिसाइलों को नियंत्रित किया जा सकता है।
तकनीक कैसे काम करती है?, दो चरणों वाला विनाश का रास्ता
हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल दो प्रमुख चरणों में कार्य करता है:
पहला चरण – लॉन्च और रीएंट्री
सबसे पहले इस मिसाइल को पृथ्वी के बाहर किसी ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जाता है। इसके बाद ये ग्लाइड व्हीकल पृथ्वी के वायुमंडल में पुन: प्रवेश करता है।
दूसरा चरण – लक्ष्य की ओर घातक बढ़त
वायुमंडल में प्रवेश करने के बाद यह मिसाइल अत्यधिक तेज़ गति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती है। इसकी उड़ान दिशा को बार-बार बदला जा सकता है, जिससे किसी भी रडार या इंटरसेप्टर सिस्टम के लिए इसे पकडऩा लगभग असंभव हो जाता है।
इतिहास: कब और कैसे शुरू हुआ चीन का यह प्रोजेक्ट?
- 2010: चीन ने हाइपरसोनिक मिसाइल प्रोग्राम की शुरुआत की।
- 2017: पहली सफल परीक्षण उड़ान, जिसने अंतरिक्ष से लॉन्च की दिशा में आगे बढऩे की नींव रखी।
- 2021: अमेरिकी वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने उन्नत हाइपरसोनिक मिसाइल का पुन: परीक्षण किया, जिसमें अंतरिक्षीय लॉन्च क्षमता को परखा गया।
- 2025: अब, चीन इस तकनीक को प्रयोगात्मक स्तर से संचालनिक स्तर तक ले आया है।
यह उल्लेखनीय है कि जहां अमेरिका और रूस वर्षों से इस क्षेत्र में अनुसंधान कर रहे हैं, वहीं चीन ने मात्र 15 वर्षों में इस अत्याधुनिक तकनीक को व्यावहारिक बना दिया है।
चीन के लिए रणनीतिक बढ़त: क्यों है यह मिसाइल गेमचेंजर?
- डिटेक्शन से पहले हमला: हाइपरसोनिक गति और ट्रैजेक्टरी के अप्रत्याशित पैटर्न के चलते ये मिसाइलें किसी भी वायु रक्षा प्रणाली के डिटेक्शन और प्रतिक्रिया से पहले ही लक्ष्य तक पहुंच सकती हैं।
- सैटेलाइट या स्पेस स्टेशन आधारित लॉन्चिंग: इसका मतलब है कि चीन पृथ्वी की कक्षा में हथियारबंद स्पेस स्टेशन स्थापित कर सकता है, जिससे कभी भी और कहीं भी हमला किया जा सकता है।
- नो फस्र्ट यूज पॉलिसी के बाहर की क्षमता: इन मिसाइलों की तैनाती के साथ चीन ऐसे हथियारों के ज़रिए प्रथम आघात देने की क्षमता पा सकता है, जो वैश्विक परमाणु संतुलन को भी बिगाड़ सकता है।
- भारत-अमेरिका के लिए खतरे की घंटी: रणनीतिक समीकरण बदलते हुए भारत के लिए चिंता: भारत की रक्षा प्रणाली अभी मुख्यत: पृथ्वी-आधारित इंटरसेप्टर मिसाइलों और रडार्स पर निर्भर है।
डीआरडीओ द्वारा विकसित शौर्य और अग्नि जैसी मिसाइलें भले ही आधुनिक हों, लेकिन वे मुख्यत: बैलिस्टिक प्रकृति की हैं और हाइपरसोनिक ट्रैजेक्टरी को ट्रैक करना कठिन है। भारत ने 2019 में च्मिशन शक्तिज् के तहत एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण किया था, लेकिन स्पेस में हाइपरसोनिक मिसाइल को नष्ट करना कहीं ज्यादा जटिल चुनौती है।
अमेरिका की चिंता
- अमेरिकी डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की रिपोर्ट में पहले ही चीन की एचजीवी तकनीक को गेम चेंजर कहा जा चुका है।
- अमेरिका की थॉड और पेट्रोईट मिसाइल सिस्टम जैसी पारंपरिक रक्षा प्रणालियां हाइपरसोनिक गति से आने वाली मिसाइलों के सामने बेअसर हो सकती हैं।
- चीन की इस क्षमता से इंडो-पैसिफिक में अमेरिकी सैन्य मौजूदगी को चुनौती मिल सकती है।
क्या है समाधान? क्या किया जा सकता है इस खतरे से निपटने के लिए?
- एंटी-सैटेलाइट तकनीक: भारत, अमेरिका और रूस के पास पहले से ही ऐसी तकनीक है जिससे किसी सैटेलाइट या ऑर्बिटल प्लेटफॉर्म को नष्ट किया जा सकता है। इससे स्पेस-लॉन्च मिसाइल की लॉन्चिंग को रोका जा सकता है।
- डिटेक्शन और ट्रैकिंग में सुधार: नई पीढ़ी की स्पेस-बेस्ड इन्फ्रारेड सेंसिंग सैटेलाइट्स का विकास हाइपरसोनिक मिसाइलों की गति और ट्रैजेक्टरी को पहचानने में मदद कर सकता है।
- हाइपरसोनिक इंटरसेप्टर प्रोग्राम्स: अमेरिका का ग्लाइड फेज इंटरसेप्टर और भारत का डीआडीओ आधारित एडी-1/एडी-2 जैसे प्रोग्राम ऐसे इंटरसेप्टर विकसित कर रहे हैं जो ग्लाइड फेज़ में ही एचजीवी को निशाना बना सकें।
- वैश्विक संधियां और नियंत्रण: अंतरिक्ष में हथियारों की तैनाती पर वैश्विक संधियों की आवश्यकता अब पहले से कहीं ज्यादा है। संयुक्त राष्ट्र के PAROS प्रस्ताव को सशक्त करना आज की आवश्यकता है।
चीन का ब्रह्मास्त्र – तकनीक की छलांग या दुनिया के लिए संकट?
चीन की स्पेस-लॉन्च मिसाइल तकनीक आधुनिक सैन्य तकनीकों का शिखर है। यह केवल एक सैन्य प्रणाली नहीं बल्कि भविष्य की अंतरिक्ष रणनीति का प्रारूप है। भारत, अमेरिका और अन्य लोकतांत्रिक राष्ट्रों के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे न केवल अपनी रक्षा प्रणाली को अपग्रेड करें, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस विषय को गंभीरता से उठाएं। अंतरिक्ष युद्ध की ओर बढ़ते इस खतरनाक रुझान को समय रहते नियंत्रित करना ही वैश्विक शांति और संतुलन के लिए आवश्यक है।
