
नई दिल्ली. CJI BR Gavai: भारतीय न्यायपालिका ने 14 मई 2025 को एक नया अध्याय शुरू किया जब न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार संभाला। इस गौरवपूर्ण अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रपति भवन में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, वरिष्ठ न्यायाधीश, केंद्रीय मंत्री, और अन्य प्रमुख गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।
संवैधानिक प्रक्रिया और वरिष्ठता की परंपरा के अनुसार नियुक्ति
सीजेआई पद पर नियुक्ति भारत के संविधान की भावना और परंपरागत नियमों के अनुसार की जाती है। आमतौर पर, निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश अपने उत्तराधिकारी के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के नाम की सिफारिश करते हैं। न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो बीआर गवई से ठीक पहले सीजेआई थे, ने 16 अप्रैल को केंद्र सरकार को उनके नाम की सिफारिश भेजी थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने 30 अप्रैल को कानून मंत्रालय के माध्यम से गवई की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की।
सीजेआई के रूप में जस्टिस गवई का कार्यकाल हालांकि तुलनात्मक रूप से छोटा होगा-वे 23 नवम्बर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे-लेकिन इस अवधि में उनसे अपेक्षा की जा रही है कि वे न्यायपालिका को अधिक पारदर्शी, उत्तरदायी और संवेदनशील बनाने के लिए सक्रिय भूमिका निभाएंगे।
व्यक्तिगत पृष्ठभूमि और सामाजिक संदर्भ
जस्टिस बीआर गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले में हुआ था। उनके पिता, दिवंगत आर.एस. गवई, एक प्रतिष्ठित राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जो बिहार और केरल के राज्यपाल भी रह चुके हैं। न्यायमूर्ति गवई दलित समुदाय से आते हैं और वह भारत के दूसरे अनुसूचित जाति वर्ग से संबंध रखने वाले मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले न्यायमूर्ति के.जी. बालाकृष्णन ने वर्ष 2007 से 2010 तक यह पद संभाला था। गवई की नियुक्ति सामाजिक समावेशन और न्यायिक क्षेत्र में प्रतिनिधित्व को लेकर एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखी जा रही है।
वकालत से लेकर न्यायपालिका तक का सफर
न्यायमूर्ति गवई का कानूनी सफर 16 मार्च 1985 को वकालत से शुरू हुआ। प्रारंभ में वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी अधिवक्ता रहे। उन्होंने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के रूप में कार्य किया। 17 जनवरी 2000 को उन्हें सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया।
उनकी न्यायिक नियुक्ति 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में हुई और दो साल बाद, 12 नवंबर 2005 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। करीब 14 वर्षों की सेवा के बाद 24 मई 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
संविधान पीठों में महत्वपूर्ण भूमिका
न्यायमूर्ति गवई ने सुप्रीम कोर्ट में कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों में योगदान दिया। उनकी व्याख्यात्मक दृष्टिकोण और तर्कसंगत दृष्टिकोण ने उन्हें जटिल संवैधानिक मुद्दों में नेतृत्व की भूमिका दिलाई। दिसंबर 2023 में, अनुच्छेद 370 को लेकर बनी पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में वे शामिल थे, जिसने सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त कर दिया गया था। यह फैसला न केवल राजनीतिक बल्कि संवैधानिक दृष्टिकोण से भी भारत के संघीय ढांचे और केंद्र-राज्य संबंधों के लिए एक निर्णायक मोड़ माना गया। न्यायमूर्ति गवई की इस फैसले में भूमिका को निष्पक्ष और कानून के अनुरूप माना गया।

महत्वपूर्ण ऐतिहासिक फैसले: सामाजिक और संवैधानिक सरोकारों का संतुलन
1. राजीव गांधी हत्याकांड (2022)
जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 2022 में उस याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई की मांग की गई थी। इस फैसले में कहा गया कि राज्यपाल ने तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर कार्रवाई नहीं की और दोषियों की रिहाई को स्वीकार करते हुए उन्हें 30 साल की सजा के बाद आज़ाद किया गया। यह फैसला भारत के संघीय ढांचे, राज्यपाल की भूमिका और सुधारात्मक न्याय के सिद्धांत को केंद्र में लाता है।
2. वणियार आरक्षण मामला (2022)
तमिलनाडु सरकार ने वणियार समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्गों में से अलग कर विशेष आरक्षण देने की कोशिश की थी। न्यायमूर्ति गवई की बेंच ने इस निर्णय को असंवैधानिक ठहराया और कहा कि यह अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भेदभाव करता है। यह फैसला आरक्षण नीति की समानता की अवधारणा और संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के आलोक में एक सशक्त उदाहरण बन गया।
3. नोटबंदी (2023)
वर्ष 2016 में लागू की गई नोटबंदी योजना की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 2023 में जस्टिस गवई की बेंच ने निर्णय सुनाया। बहुमत से 4.1 के फैसले में इस योजना को वैध ठहराया गया। गवई ने कहा कि केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से परामर्श करने के बाद यह निर्णय लिया और यह “अनुपातिकता” की कसौटी पर खरा उतरता है। यह फैसला सरकार की नीतिगत निर्णयों में न्यायिक हस्तक्षेप की सीमा तय करने वाला माना गया।
4. ईडी निदेशक का कार्यकाल (2023)
जुलाई 2023 में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल को लेकर विवाद उठा। सरकार ने उनके कार्यकाल को तीसरी बार बढ़ाया था, जिसे न्यायमूर्ति गवई की बेंच ने असंवैधानिक करार देते हुए उन्हें 31 जुलाई तक पद छोडऩे का आदेश दिया। यह फैसला शक्तियों के पृथक्करण और कार्यपालिका की जवाबदेही की दिशा में महत्वपूर्ण माना गया।
5. बुलडोजर कार्रवाई पर टिप्पणी (2024)
2024 में, न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की बेंच ने एक अत्यंत संवेदनशील और ज्वलंत मुद्दे पर फैसला दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी आरोपी या दोषी व्यक्ति की संपत्ति को केवल आरोप के आधार पर तोडऩा कानून के विपरीत है। उन्होंने बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी भी ढांचागत कार्रवाई को असंवैधानिक करार दिया और जिम्मेदार अधिकारियों पर दायित्व निर्धारित किया। यह फैसला न्याय और मानवाधिकारों की रक्षा का प्रतीक बना।
अन्य उल्लेखनीय फैसले और निर्णय
- न्यायमूर्ति गवई ने कई अन्य मामलों में भी समाज और राजनीति पर प्रभाव डालने वाले निर्णय दिए
- मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी को राहत: सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा के बाद लोकसभा से अयोग्यता पर राहत दी, जिससे उनकी राजनीतिक सक्रियता को पुन: ऊर्जा मिली।
- तीस्ता शीतलवाड़ को जमानत: गुजरात दंगों से जुड़े मामलों में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता को जमानत दी गई, जिसमें मानवीय आधारों को केंद्र में रखा गया।
- दिल्ली शराब नीति घोटाला: दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और बीआरएस नेता के कविता को भी जमानत मिली, जिससे इन मामलों की न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन और निष्पक्षता की छवि बनी।
सीजेआई के रूप में चुनौतियां और प्राथमिकताएं
न्यायमूर्ति गवई के सामने देश की न्यायपालिका की कई जटिल चुनौतियां हैं
- न्यायिक प्रक्रिया में विलंब: देश की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या करोड़ों में है। इससे निपटना प्राथमिकता होगी।
- तकनीकी सुधार और डिजिटलीकरण: न्याय प्रक्रिया को आधुनिक बनाना, ई-कोट्र्स की कार्यक्षमता को बढ़ाना।
- न्यायिक पारदर्शिता: न्यायिक नियुक्तियों की प्रक्रिया, विशेषकर कॉलेजियम प्रणाली की पारदर्शिता को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं।
- संविधान की रक्षा और सामाजिक न्याय: गवई से अपेक्षा की जा रही है कि वे भारत के संविधान के मूल्यों की रक्षा करते हुए न्यायपालिका को समाज के सभी वर्गों के लिए सुलभ और न्यायपूर्ण बनाएंगे।
राजसमंद के दौरे के दौरान गवई ने कही थी ये बात, मैं पिपलांत्री की तीर्थ यात्रा पर आया हूं”
पांच अप्रेल 2025 चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने से पहले बीआर गवई राजसमंद जिले में दौरे पर रहे। उन्होंने यहां नाथद्वारा में प्रदेश के वि?धिक सेवा प्राद्यिकरण के सचिवों की बैठक भी ली थी। इस दौरान उन्होंने राजसमंद के पिपलांत्री गांव का भी भ्रमण किया। पर्यावरण की रक्षा, बेटियों के सम्मान और समाज के लिए न्याय की पुकार- ये सब जब एक ही मंच पर एकाकार हो जाएं, तो वह क्षण केवल आधिकारिक नहीं, आत्मिक बन जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ जब भारत के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस बी.आर. गवई ने ग्राम पिपलांत्री की धरती को नमन करते हुए कहा “मैं यहां किसी दौरे पर नहीं, एक तीर्थ यात्रा पर आया हूं।” यह कोई औपचारिक वक्तव्य नहीं था, बल्कि एक अनुभवी न्यायमूर्ति के अंतर्मन की पुकार थी, जो पिपलांत्री के हरियालेपन, बेटियों की स्मृति में लगाए गए पौधों, और ग्रामवासियों की संवेदनशीलता से गहराई तक प्रभावित हो गया था।
जहां हर पौधा एक बेटी की याद में लहलहाता है
पिपलांत्री कोई सामान्य गांव नहीं। यहां जब एक बेटी जन्म लेती है या विदा होती है, तो उसकी स्मृति में 111 पौधे लगाए जाते हैं। यह परंपरा न तो सरकारी योजना है और न ही किसी एनजीओ की रणनीति। यह है भावनाओं से उपजा एक आत्मीय संकल्प जो प्रकृति और नारी के प्रति श्रद्धा से जन्मा है। जब जस्टिस बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति संदीप मेहता, राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधिपति एमएम श्रीवास्तव, और केंद्रीय कानून राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल पिपलांत्री पहुंचे थे, तो उनका स्वागत किसी औपचारिक जलसे की तरह नहीं, बल्कि ग्रामवासियों की आत्मीयता से हुआ।
गवई ने संत तुकाराम की पंक्तियों को किया था याद
जस्टिस गवई ने इस दौरान संत तुकाराम की पंक्तियां भी याद की। गांव के हरे-भरे वातावरण को देखकर मंच पर पहुंचे जस्टिस गवई का हृदय जैसे बोल पड़ा। उन्होंने मराठी संत तुकाराम की पंक्तियां उद्धृत करते हुए कहा- “पेड़ों की छांव में जो सुख है, वह किसी महल में नहीं।” उन्होंने कहा था कि “आज के युग में जब पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, तब पिपलांत्री जैसे गांव हमें सिखाते हैं कि समाधान कोई विदेशी फार्मूला नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और लोकचेतना में ही छिपा है।”
हैदराबाद के जंगल की कटाई पर किया न्यायिक हस्तक्षेप, बताया अदालती जवाबदेही का उदाहरण
मुख्य न्यायाधीश गवई ने बताया कि हाल ही में हैदराबाद में 400 में से 100 एकड़ जंगल काटे जा रहे थे, जिस पर अदालत ने संज्ञान लिया और उसे रोका। उन्होंने कहा, “प्रश्न यह नहीं है कि हम विकास चाहते हैं या नहीं, प्रश्न यह है कि विकास की कीमत क्या चुकानी है। यदि वह कीमत हमारी नदियाँ, हमारे पेड़ और हमारे जंगल हैं- तो यह सौदा आत्मघाती है।”
‘बेटी बचाओ’ से ‘पर्यावरण बचाओ’ तक पिपलांत्री बना राष्ट्रीय प्रेरणा स्रोत
जस्टिस गवई ने पिपलांत्री मॉडल की प्रशंसा करने से नहीं चूके, उन्होंने कहा कि “इस धरती पर बेटी और वृक्ष दोनों को एक जैसा सम्मान मिला है। यही भारत की आत्मा है, यही संवैधानिक चेतना है।” उन्होंने ग्राम प्रधान अनीता पालीवाल और पर्यावरणविद् श्याम सुंदर पालीवाल को न्यायपालिका की ओर से विशेष धन्यवाद दिया और कहा कि पिपलांत्री अब केवल एक गांव नहीं, बल्कि एक “हरित संविधान” बन चुका है।
“पिपलांत्री मॉडल अब वैश्विक स्तर पर गूंजता है”: अर्जुनराम मेघवाल
भारत सरकार के केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कबीरदास के भजन का उल्लेख करते हुए पर्यावरण चेतना को सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में जोड़ा था। उन्होंने कहा, “कबीर कहते हैं- ‘जल बिन मछली ज्यों व्याकुल, यह नर बिन नीति।’ आज पिपलांत्री ने यह नीति साकार कर दिखाई है। यहां जल, वृक्ष और नारी—तीनों का सम्मान होता है।” मेघवाल ने यह भी कहा कि “पिपलांत्री मॉडल अब भारत की सीमाओं को पार कर अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंच चुका है। इसे देख संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ भी अचंभित हैं कि भारत का एक छोटा सा गांव पर्यावरण और लैंगिक समानता की सबसे बड़ी प्रयोगशाला बन चुका है।”
पिपलांत्री एक गांव नहीं, भारत की आत्मा का आईना है
- जब एक प्रधान न्यायाधीश यह कहे कि वह ‘तीर्थ यात्रा’ पर आया है, तो यह वक्तव्य औपचारिक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक सत्य बन जाता है।
- पिपलांत्री अब केवल पर्यावरण संरक्षण का उदाहरण नहीं रहा, यह भारत की न्यायिक चेतना, सांस्कृतिक समृद्धि और सामाजिक सौहार्द का संगम बन चुका है।
- यह गाँव भारत को यह सिखा रहा है कि हर बेटी के साथ एक पौधा लगाने से न केवल प्रकृति मुस्कुराती है, बल्कि समाज भी मजबूत होता है।
आने वाली पीढ़ी को देना होगा स्वच्छ वातावरण”-जस्टिस संदीप मेहता
इस कार्यक्रम में आए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भेजा गया संदेश भी मंच पर पढकऱ सुनाया। उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री का यह संदेश कि पिपलांत्री जैसे प्रयास ही भारत को विकसित राष्ट्र बनाएंगे, यह हमारे लिए संबल है।”“आज इस गांव में आकर हम सबको एक प्रकार का आंतरिक झकझोर अनुभव हुआ है। हम न्याय करते हैं अदालतों में, लेकिन पिपलांत्री ने सिखाया कि प्रकृति से अन्याय नहीं होना चाहिए। यह भी एक न्याय है-हरित न्याय।”
“प्रदूषण मुक्त वातावरण ही हरित न्याय का मूल तत्व”- एम.एम. श्रीवास्तव
राजस्थान हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधिपति मनिन्द्र मोहन श्रीवास्तव ने अपने संबोधन में कहा,”हरित न्याय केवल सिद्धांत नहीं, यह अब आवश्यकता बन चुका है। यदि वातावरण विषैला होगा, तो नागरिकों का जीवन अधिकार भी खतरे में होगा।” उन्होंने जोर देकर कहा कि न्याय केवल सामाजिक या आर्थिक नहीं, अब “पर्यावरणीय न्याय” भी होना चाहिए।
