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DR. Ambedkar Warning: “अंबेडकर दी थी ये चेतावनी: पाकिस्तान बनने के बाद भी नहीं मिटेगी हिंदू-मुस्लिम खाई, सामाजिक एकता ही समाधान”

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DR. Ambedkar
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नई दिल्ली. DR. Ambedkar Warning: डॉ. भीमराव आंबेडकर को सिर्फ संविधान निर्माता कहना उनके विचारों की गहराई को कम आँकना होगा। आज जब भारत विभाजन और साम्प्रदायिकता जैसे सवाल फिर से चर्चा में हैं, बाबा साहेब की एक पुरानी चेतावनी चौंकाने वाली स्पष्टता के साथ सामने आती है – “पाकिस्तान बन भी जाए, तब भी हिंदू-मुस्लिम विवाद खत्म नहीं होगा।” यह बात उन्होंने 1940 के दशक में अपनी चर्चित किताब “पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन” में कही थी। आज़ादी से पहले जब मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग पर अड़ी थी, आंबेडकर ने बहुत ही संतुलित और तार्किक ढंग से इस ज्वलंत सवाल की पड़ताल की।

क्या पाकिस्तान बना देने से समस्या खत्म हो जाएगी?

बाबा साहेब ने साफ़ शब्दों में कहा कि पाकिस्तान बनने के बाद भी भारत में सांप्रदायिक तनाव खत्म नहीं होगा, क्योंकि भारत हमेशा एक मिश्रित समाज बना रहेगा। उन्होंने लिखा कि “मुस्लिम आबादी पूरे भारत में बिखरी हुई है। कोई भी सीमा रेखा हिंदुस्तान को सजातीय देश नहीं बना सकती।”

एकमात्र समाधान – जनसंख्या की अदला-बदली

बाबा साहेब का मानना था कि अगर स्थायी सांप्रदायिक शांति चाहिए, तो हिन्दू-मुस्लिम आबादी की अदला-बदली ही एकमात्र व्यावहारिक उपाय है। उन्होंने ग्रीस, तुर्की और बुल्गारिया जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि अगर सीमित संसाधनों वाले ये देश ऐसा कर सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं? “यह न सोचना बचकानापन है कि जनसंख्या अदला-बदली का विचार अव्यवहारिक है। यह समाधान न अपनाना खुद को धोखा देने जैसा है।”

हिंदू-मुस्लिम एकता: हकीकत या मृगतृष्णा?

आंबेडकर ने इस बहस में एक बहुत गहरा सवाल उठाया – क्या राजनीतिक समझौते से धार्मिक समूहों के बीच सच्ची एकता आ सकती है? “केवल राजनीतिक एकता से काम नहीं चलेगा। सामाजिक एकता और सच्चे हृदय मिलन की आवश्यकता है। वरना यह दो ऐसे अजनबियों का साथ होगा जिन्हें जबरन एक डोर से बांध दिया गया है।”

तीन दशक का अनुभव, एक कड़वा सच

आंबेडकर ने माना कि बीते तीस वर्षों में हिंदू-मुस्लिम एकता की भरसक कोशिशें हुईं, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। “अब ऐसा कुछ नहीं बचा जो न किया गया हो – एक पक्ष को आत्मसमर्पण के अलावा कोई विकल्प नहीं। ऐसे में अगर कोई कहे कि हिंदू-मुस्लिम एकता मृगतृष्णा है, तो उसे निराशावादी नहीं कहा जा सकता।”

कड़वा लेकिन…

डॉ. आंबेडकर का निष्कर्ष स्पष्ट था – हिंदू और मुसलमान इतने भिन्न हैं कि वे एक राष्ट्र के रूप में एक साथ नहीं रह सकते। उनके मत में यह असमानताएँ इतनी गहरी हैं कि शांति से सह-अस्तित्व की संभावनाएँ बेहद सीमित हैं। “यह मतभेद स्थायी हैं। उन्हें नजरअंदाज करना, समस्या के समाधान की बजाय उसकी अनदेखी करना है।”

आज के भारत के लिए आंबेडकर का संदेश

बाबा साहेब की दूरदर्शिता आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने न केवल विभाजन की अनिवार्यता को समझा, बल्कि उसके बाद की चुनौतियों का भी अनुमान लगाया। उनकी सोच न तुष्टिकरण थी, न कट्टरता – बल्कि तर्क, अनुभव और सामाजिक न्याय पर आधारित थी।

Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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