
नई दिल्ली. Dr. Manmohan Singh: 1991 में जब भारत आर्थिक संकट से जूझ रहा था, तब डॉ. मनमोहन सिंह ने एक ऐतिहासिक केंद्रीय बजट प्रस्तुत किया, जिसने देश की अर्थव्यवस्था की दिशा ही बदल दी। यह बजट न केवल भारत को दिवालियापन से बचाने में सहायक रहा, बल्कि यह भी साबित हुआ कि मुश्किल समय में सही निर्णय ही राष्ट्र को संकट से उबार सकते हैं। हालांकि, यह फैसला लेने और बजट प्रस्तुत करने में उन्हें पार्टी और विरोधियों से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा।
ये भी पढ़ें: Manmohan Singh Death: केंद्र ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया, शनिवार को राजकीय सम्मान से किया जाएगा अंतिम संस्कार
साहसिक आर्थिक सुधारों का कदम
डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत बजट में कई कड़े सुधारों की घोषणा की गई, जिनमें उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि प्रमुख थी। इन फैसलों ने देश के राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी, और कांग्रेस पार्टी के अंदर भी विरोध देखा गया। लेकिन सिंह ने इन कठिन निर्णयों को लागू करने में कोई संकोच नहीं किया, और उनकी दृढ़ता ही अंततः भारत को संकट से बाहर निकालने में सफल रही।
ये भी पढ़ें: Dr. Manmohan Singh: मनमोहन सिंह से जुड़े 10 रोचक तथ्य: मिट्टी के तेल से जलते लैंप में पढ़ाई करने वाले नेता का अद्भुत सफर
संवाददाता सम्मेलन में खुलकर बात
इस ऐतिहासिक बजट के बाद 25 जुलाई 1991 को डॉ. मनमोहन सिंह ने बिना किसी पूर्व तैयारी के एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया। उनका उद्देश्य था कि बजट के प्रस्तावों को मीडिया में सही तरीके से प्रस्तुत किया जाए, ताकि अधिकारियों की उदासीनता से संदेश विकृत न हो। सिंह ने इसे “मानवीय बजट” करार दिया और अपनी नीतियों का मजबूत बचाव किया।
ये भी पढ़ें: Manmohan Singh: प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के निधन पर जताया शोक: ‘जब मैं गुजरात का CM था, तब उनके साथ थे कई यादगार पल’
कांग्रेस पार्टी में विरोध की लहर
बजट के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर भारी असंतोष देखा गया। 1 अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में पार्टी सांसदों को खुलकर अपनी बात रखने का मौका दिया गया। इस बैठक में केवल दो सांसदों, मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा ने बजट का समर्थन किया। इसके बावजूद, डॉ. सिंह ने पार्टी के दबाव को नजरअंदाज करते हुए उर्वरक की कीमतों में केवल 30 प्रतिशत वृद्धि को स्वीकार किया, जबकि पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में वृद्धि को बरकरार रखा।
ये भी पढ़ें: Manmohan Singh death : भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के स्तंभ सदा के लिए कर गए अलिवदा, राजकीय सम्मान से शनिवार को होगा अंतिम संस्कार
पीवी नरसिंह राव का विश्वास और समर्थन
इस महत्वपूर्ण मोड़ पर प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने डॉ. मनमोहन सिंह को पूरी स्वतंत्रता दी और उन्हें आलोचनाओं का सामना करने के लिए अकेला छोड़ दिया। राव ने कभी भी सिंह का सार्वजनिक रूप से बचाव नहीं किया, जिससे यह साफ हो गया कि वे सिंह के निर्णयों पर पूरी तरह से विश्वास रखते थे। यह एक दुर्लभ उदाहरण था, जब एक नेता अपने सलाहकार को संकट के समय पूरी स्वतंत्रता देने का साहस दिखाता है।
ये भी पढ़ें: Manmohan Singh Death: संकट में संकटमोचक ने दो हफ्तों में बदल दी थी देश की तकदीर
एक ऐतिहासिक मोड़ और संतुलन
डॉ. मनमोहन सिंह के इस साहसिक बजट ने न केवल भारत को आर्थिक संकट से उबारा, बल्कि यह यह भी दिखाया कि एक सशक्त नेता कठिन परिस्थितियों में भी अपनी नीतियों से पीछे नहीं हटता। इस बजट के जरिए, सिंह ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दिलाई और देश के आर्थिक सुधारों की दिशा को स्थिर किया। मनमोहन सिंह का यह ऐतिहासिक बजट आज भी एक मिसाल के रूप में देखा जाता है कि कैसे एक दृढ़ नेतृत्व और नीतिगत साहस से देश के आर्थिक भविष्य को नया मोड़ दिया जा सकता है।
