
नई दिल्ली. Female Naga Sadhu: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से महाकुंभ मेला शुरू होने वाला है, जो 26 फरवरी तक चलेगा। इस दौरान साधु-संतों का आगमन भी शुरू हो गया है। कुंभ मेला हमेशा से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है, लेकिन इसमें सबसे अधिक उत्सुकता नागा साधुओं के प्रति होती है। क्या आप जानते हैं कि महिला नागा साधु भी होती हैं? महिला नागा साधुओं का जीवन भी पुरुष नागा साधुओं के समान कठिन और रहस्यमयी होता है। आइए जानते हैं इन महिला साधुओं के जीवन के बारे में।
दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा
महिला नागा साधु “माई बाड़ा” में रहती हैं, जिसे अब दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा कहा जाता है। नागा साधु बनने के लिए वैष्णव, शैव और उदासीन तीनों संप्रदायों से जुड़ा जाता है।
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और लंबी होती है। इसके लिए महिला को 10 से 15 साल तक ब्रह्मचर्य का जीवन बिताना होता है। जब गुरु को लगता है कि महिला ईश्वर के प्रति समर्पित हो चुकी है और साधना में सक्षम है, तब उसे नागा साधु बनने की इजाजत मिलती है। महिला नागा साधु बनने से पहले उनका मुंडन कराया जाता है। इसके बाद महिला के पिछले जीवन के बारे में भी जानकारी ली जाती है, यह देखा जाता है कि वह कठिन साधना कर पाएगी या नहीं। इसके बाद महिला को अपना पिंडदान करना होता है, तभी वह नागा साधु बन सकती है।
पहनावे और पहचान
महिला नागा साधु अपने मस्तक पर तिलक लगाती हैं और सिर्फ एक गेरुआ वस्त्र पहनती हैं, जिसे “गंती” कहा जाता है। यह वस्त्र उनकी पहचान का प्रतीक होता है।

पुरुष और महिला नागा में अंतर
पुरुष नागा साधु अक्सर वस्त्रधारी होते हैं, जबकि कुछ दिगंबर (निर्वस्त्र) भी होते हैं। वहीं, महिला नागा साधु हमेशा वस्त्रधारी ही होती हैं, और दिगंबर नहीं बनतीं।
महिला नागा साधु का दिनचर्या
महिला नागा साधु का दिन भगवान के नाम के जाप में व्यतीत होता है। वे सुबह शिवजी की पूजा करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। इन्हें “माई”, “नागिन” और “अवधूतानी” के नाम से भी जाना जाता है। महिला नागा साधु का जीवन एक ऐसी साधना की मिसाल है, जो समर्पण, तप और संघर्ष से भरा होता है। उनका मार्गदर्शन और साधना की गहराई न केवल अपने आत्मकल्याण के लिए, बल्कि समाज और संस्कृति की संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण होती है।
