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India-china Trade: भारत बनेगा विश्व का नया तेल उपभोक्ता केंद्र: आयात में तेज़ी, ऊर्जा नीति की असली परीक्षा अब शुरू”

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Modi And Zinping Photo AI genreted
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नई दिल्ली. India-china Trade: अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा परिदृश्य में एक नया मोड़ आ रहा है। बीते दशक में चीन ने जहां वैश्विक तेल मांग का नेतृत्व किया, वहीं अब आने वाले वर्षों में यह भूमिका भारत निभाने जा रहा है। रेटिंग एजेंसी मूडीज की एक ताज़ा रिपोर्ट में यह साफ़ किया गया है कि भारत की तेल खपत में न केवल जबरदस्त वृद्धि होगी, बल्कि यह चीन से भी अधिक तेज़ गति से बढ़ेगी। इसका व्यापक असर तेल व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा, और भारत की आर्थिक रणनीति पर देखने को मिलेगा।

चीन बनाम भारत: ऊर्जा खपत की नई प्रतिस्पर्धा
  • चीन का झुकाव हरित ऊर्जा की ओर: चीन ने बीते वर्षों में औद्योगिक विकास के बल पर कच्चे तेल की वैश्विक मांग को बढ़ावा दिया था। लेकिन अब वहाँ की अर्थव्यवस्था में सुस्ती, और इलेक्ट्रिक वाहनों की तेज़ी से बढ़ती पैठ के कारण तेल की मांग में गिरावट आ रही है। मूडीज का अनुमान है कि आने वाले 3-5 वर्षों में चीन की कच्चे तेल की मांग अपने चरम पर पहुंचकर धीरे-धीरे स्थिर हो जाएगी।
  • भारत की उभरती ज़रूरतें: इसके उलट भारत में शहरीकरण, औद्योगीकरण, और इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निवेश के चलते ऊर्जा की खपत तेजी से बढ़ रही है। मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कच्चे तेल की मांग हर साल 3 से 5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। यह वृद्धि भारत को न केवल एक प्रमुख तेल उपभोक्ता, बल्कि एक रणनीतिक ऊर्जा आयातक भी बनाएगी।
तेल आयात: भारत की बढ़ती निर्भरता
  • तेल पर आयात निर्भरता, 90 प्रतिशत से भी अधिक: वर्तमान में भारत अपनी कुल कच्चे तेल की खपत का लगभग 90त्न आयात करता है। यही नहीं, गैस की खपत का भी लगभग 50% हिस्सा विदेशों से आता है। भारत की घटती घरेलू उत्पादन क्षमता इस स्थिति को और गंभीर बना रही है।
  • चीन की रणनीति-आत्मनिर्भरता की ओर: चीन ने इस मोर्चे पर पहले ही सजगता दिखा दी है। वह घरेलू उत्पादन, शेल गैस, और ऑफशोर प्रोजेक्ट्स में निवेश कर अपनी आयात निर्भरता को कम करने में जुटा है। इसके साथ ही चीनी कंपनियां तेल के मूल्य श्रृंखला के हर हिस्से में एकीकृत रूप से कार्य करती हैं, जिससे कमाई में स्थिरता बनी रहती है।
  • भारत की रिफाइनिंग रणनीति,विस्तार की दौड़: भारत सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां जैसे कि आईओसी, एचपीसीएल, और बीपीसीएल घरेलू मांग को पूरा करने के लिए रिफाइनिंग क्षमता में ज़बरदस्त निवेश कर रही हैं। वर्तमान में भारत की रिफाइनिंग क्षमता 256.8 मिलियन टन प्रति वर्ष है, जिसे 2030 तक 309.5 मिलियन टन प्रति वर्ष तक बढ़ाने का लक्ष्य है। इसके विपरीत, चीन की रिफाइनिंग क्षमता पहले ही सरकारी निर्धारित सीमा तक पहुँच चुकी है, इसलिए वहाँ विस्तार की संभावना कम है।
गैस की मांग: नई संभावनाएं और चुनौतियां
  • भारत में गैस की मांग, 4-7 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि: गैस की खपत भारत में खासतौर पर सीएनजी, पाइप गैस, और फर्टिलाइजऱ-केमिकल उद्योगों के चलते बढ़ रही है। 2030 तक इसकी मांग में 4-7त्न वार्षिक वृद्धि हो सकती है। लेकिन यहाँ गैस इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी और रिन्यूएबल एनर्जी के सस्ते विकल्प एक बाधा के रूप में सामने आ सकते हैं।
  • चीन में बाज़ार आधारित नीति: चीन की गैस नीति ज़्यादा बाज़ार उन्मुख है। भारत में हालांकि सरकार की नीतियाँ और पेट्रोलियम उत्पादों पर कर और सब्सिडी व्यवस्था गैस मूल्य निर्धारण और कंपनियों की आमदनी को प्रभावित करती है।
सरकार और तेल कंपनियां: राजस्व और नीतिगत दबाव
  • भारत में सरकारी भूमिका अहम: भारत सरकार को तेल और गैस क्षेत्र से मिलने वाले कर और डिविडेंड उसकी राजस्व प्रणाली का एक अहम हिस्सा हैं। हर साल पेट्रोल-डीजल पर लगने वाला एक्साइज ड्यूटी, वैट, और डिविडेंड सरकार के बजट में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
  • चीन में कम सरकारी हस्तक्षेप: चीन में हालांकि यह भूमिका सीमित है। वहां सरकारी बजट की निर्भरता पेट्रोलियम सेक्टर पर कम है। साथ ही, चीन में तेल कंपनियों को ग्रीन एनर्जी में बदलने का दबाव भी अधिक है।
जलवायु नीति: भारत को करनी होगी तेज़ी
  • भारत की स्थिति अभी प्रारंभिक चरण में: मूडीज की रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया गया है कि कार्बन उत्सर्जन, ग्रीन एनर्जी, और सस्टेनेबिलिटी के मोर्चे पर भारत चीन से पीछे है। भारत में कार्बन रेगुलेशन अभी शुरुआती चरणों में हैं, जबकि चीन ने अपने उद्योगों को ग्रीन ट्रांज़िशन की दिशा में तेज़ी से धकेला है।
  • राष्ट्रीय हरित ऊर्जा मिशन का प्रभाव: हालांकि भारत ने राष्ट्रीय सौर मिशन, ग्रीन हाइड्रोजन मिशन, और ऊर्जा दक्षता अभियान शुरू किए हैं, लेकिन उनका असर अभी धीरे-धीरे देखने को मिल रहा है।
तेल व्यापार में भारत की नई भूमिका
  • वैश्विक तेल बाजार में भारत का उदय: ऊर्जा विश्लेषकों का मानना है कि भारत अब वैश्विक तेल बाजार का नया शक्ति केंद्र बनने जा रहा है। अमेरिकी, रूसी, सऊदी, और इरानी कंपनियों की नजऱ भारत पर टिकी हुई है, जो आने वाले समय में तेल निर्यात के प्रमुख गंतव्य के रूप में भारत को देख रही हैं।
  • भू-राजनीतिक असर: भारत की ऊर्जा मांग में वृद्धि का असर केवल आर्थिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक भी होगा। तेल निर्यातक देशों के साथ ऊर्जा आधारित रणनीतिक साझेदारियां मजबूत होंगी। साथ ही इंडिया-मिडल ईस्ट-यूरोप इकनॉमिक कॉरिडोर जैसे प्रोजेक्ट्स में भी भारत की सक्रियता बढ़ेगी।
चुनौतियां और समाधान,भविष्य की दिशा

चुनौतियां

  • बढ़ती आयात निर्भरता – विदेशी मुद्रा पर दबाव
  • ऊर्जा कीमतों में अस्थिरता – बजट और मुद्रास्फीति पर प्रभाव
  • ग्रीन एनर्जी और कार्बन उत्सर्जन – अंतरराष्ट्रीय दबाव
  • गैस और तेलय इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी – निवेश की ज़रूरत
संभावित समाधान
  • तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता के लिए घरेलू अन्वेषण में तेजी
  • रिन्यूएबल एनर्जी में पूंजी निवेश और नीति समर्थन
  • इलेक्ट्रिक वाहनों और हाइड्रोजन फ्यूल को बढ़ावा
  • ऊर्जा संरक्षण और उपयोग में दक्षता लाना
भारत की ऊर्जा यात्रा का नया अध्याय

मूडीज की रिपोर्ट यह स्पष्ट संकेत देती है कि आने वाले दशक में भारत न केवल चीन की जगह तेल उपभोग में सबसे आगे निकलेगा, बल्कि यह वैश्विक ऊर्जा व्यापार की दिशा को भी प्रभावित करेगा। लेकिन इस वृद्धि के साथ ऊर्जा सुरक्षा, हरित संक्रमण, और आर्थिक स्थिरता को संतुलित रखना भारत की सबसे बड़ी चुनौती होगी। यह भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर भी है और जिम्मेदारी भी – ऊर्जा के नए युग में प्रवेश करते हुए न केवल आत्मनिर्भरता का रास्ता अपनाना होगा, बल्कि हरित ऊर्जा की दिशा में भी निर्णायक कदम उठाने होंगे।

Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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