
जालंधर. India Pakistan Conflict: भारत और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव और युद्ध जैसे हालात न सिर्फ सीमाओं पर, बल्कि लोगों के दिल-दिमाग पर भी गहरा असर डाल रहे हैं। खासकर सीमा क्षेत्रों में रहने वाले आम नागरिकों पर इसका मानसिक दबाव लगातार बढ़ रहा है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के सलाहकार डॉ. नरेश पुरोहित ने चेतावनी दी है कि इस माहौल में लोगों में ‘वॉर सिंड्रोम’ जैसी गंभीर मानसिक स्थिति पैदा होने का खतरा बढ़ गया है।
डॉ. पुरोहित के मुताबिक, युद्ध चाहे छोटा हो या बड़ा, इसका प्रभाव केवल रणभूमि तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह लोगों की मानसिक स्थिति को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। मिसाइलों की धमक, गोलियों की आवाज़ और लगातार डर के माहौल में जी रहे लोग धीरे-धीरे तनाव, अवसाद और बेचैनी से घिर जाते हैं। यही मानसिक दबाव कई बार वॉर सिंड्रोम का रूप ले लेता है, जो क्कञ्जस्ष्ठ (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) जैसा मानसिक विकार है।
उन्होंने बताया कि वॉर सिंड्रोम उन लोगों में अधिक देखा जाता है जो या तो युद्ध का प्रत्यक्ष अनुभव कर चुके होते हैं, जैसे सैनिक, या फिर जो युद्ध क्षेत्र में रह रहे होते हैं, जैसे आम नागरिक और शरणार्थी। यहां तक कि बच्चे भी इस मानसिक आघात के शिकार हो सकते हैं। इस स्थिति में व्यक्ति को बार-बार हिंसक सपने आना, अचानक आवाज़ों से चौंक जाना, अत्यधिक घबराहट, नींद की कमी और अकेलेपन की भावना जैसे लक्षण उभरते हैं।
डॉ. पुरोहित ने यह भी बताया कि युद्ध खत्म होने के बाद भी यह मानसिक असर कई वर्षों तक बना रह सकता है। उन्होंने इसे ‘साइलेंट किलर’ करार देते हुए कहा कि यह इंसान को अंदर से तोड़ देता है। ऐसे में युद्ध से प्रभावित लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि युद्ध प्रभावित लोगों को समय पर काउंसलिंग, चिकित्सा सहायता और भावनात्मक सहारा मिलना चाहिए। परिवार और मित्रों का सहयोग, ध्यान और योग जैसी तकनीकें मानसिक स्थिरता लाने में काफी सहायक साबित हो सकती हैं।
