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Israel attack on Hamas: सऊदी अरब और अमेरिका के बीच रक्षा सौदे पर तनाव, मोहम्मद बिन सलमान की कठोर स्थिति

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नई दिल्ली. Israel attack on Hamas: हमास के आतंकवादी हमले के बाद से, इज़राइल ने गाजा पट्टी में हमास के खिलाफ ज़मीन और हवा से लगातार हमले जारी रखे हैं। इन हमलों ने नागरिकों पर भारी असर डाला है, और अब तक 50,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।

अब, फिलिस्तीन के पड़ोसी अरब देश और वैश्विक शक्ति सऊदी अरब, जो दशकों से अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अच्छे संबंध रखता है, ने इस दौरान एक मजबूत रुख अपनाया है। सऊदी अरब ने मांग की है कि इज़राइल के साथ-साथ एक संप्रभु फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की जाए।

सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने इस मुद्दे को कई बार उठाया है और उन्होंने एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की मांग की है। इस दौरान, सऊदी अरब के अमेरिका और इज़राइल के साथ रिश्तों में बदलाव देखा जा रहा है। यह मुस्लिम राष्ट्र पिछले कुछ वर्षों से इज़राइल के साथ द्विपक्षीय संबंध सुधारने की दिशा में काम कर रहा है।

अमेरिका से रक्षा सौदे में बदलाव और फिलिस्तीन पर सऊदी की शर्त

सऊदी अरब और अमेरिका के बीच रक्षा समझौतों में हाल के दिनों में गिरावट आई है। सऊदी अरब अब बड़े रक्षा सौदों को टाल रहा है और छोटे परियोजनाओं की दिशा में काम कर रहा है। इस बदलाव का कारण गाजा पट्टी में इज़राइल द्वारा निर्दोष नागरिकों पर किए जा रहे हमले बताए जा रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, सऊदी अरब का मानना है कि फिलिस्तीन की पहचान और राज्य की स्थापना एक ऐसी शर्त है, जिसे पूरा किए बिना वह इज़राइल के साथ रिश्तों को सामान्य नहीं कर सकता।

रॉयटर्स के अनुसार, दो सऊदी और चार पश्चिमी अधिकारियों का कहना है कि सऊदी अरब ने इस्लामी राष्ट्र के साथ इज़राइल के रिश्तों को सामान्य करने के बदले अमेरिका से व्यापक रक्षा समझौते की अपनी इच्छा छोड़ दी है। अब सऊदी अरब एक सीमित सैन्य सहयोग समझौता चाहता है, क्योंकि पश्चिमी एशिया के लोगों में गाजा युद्ध को लेकर इज़राइल के प्रति गुस्सा बढ़ रहा है।

संभावित रक्षा समझौता और ट्रंप का प्रभाव

सऊदी अरब और अमेरिका के बीच सैन्य समझौता राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल के खत्म होने से पहले तय होने की संभावना है। इस समझौते में संयुक्त सैन्य अभ्यास, रक्षा उद्योगों में साझेदारी, और सऊदी अरब में उन्नत प्रौद्योगिकियों में निवेश को बढ़ावा देने का लक्ष्य है।

हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद स्थिति और जटिल हो सकती है, क्योंकि उनके इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद के समाधान में फिलिस्तीन के राज्य की स्थापना का कोई जिक्र नहीं है। इस स्थिति में, मोहम्मद बिन सलमान का रुख देखने योग्य होगा, क्योंकि उन्हें डोनाल्ड ट्रंप से निपटना होगा, जिनके सऊदी अरब के साथ अच्छे संबंध रहे हैं।

फिलिस्तीन की स्थिति पर सऊदी अरब का नरम रुख और इज़राइल से रिश्तों की सामान्यीकरण की दिशा

सऊदी अरब ने फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के मुद्दे पर अपना रुख नरम किया है, ताकि इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य किया जा सके। सऊदी अरब ने अमेरिका को यह बताया था कि इज़राइल से दो-राज्य समाधान पर सार्वजनिक प्रतिबद्धता मिलने से ही रियाद इज़राइल के साथ संबंध सामान्य करने के लिए तैयार होगा। लेकिन वर्तमान स्थिति में, क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने फिलिस्तीन राज्य की स्थापना को इज़राइल के साथ संबंधों को सामान्य करने के लिए एक आवश्यक शर्त बना दिया है।

इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी सऊदी अरब से अपने रिश्ते सामान्य करना चाहते हैं, क्योंकि यह उनके लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी, जिससे इज़राइल को अरब दुनिया में अधिक स्वीकृति मिलेगी।

Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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