जयपुर. Neelkanth Mahadev: राजसमंद जिले के खमनोर क्षेत्र में छोटा भाणुजा गांव के पास सघन हरियाली, एकांत और मन को शांति देने वाली वादियों के बीच एक अनोखा शिवधाम है। नीलकंठ महादेव मंदिर, जिसे भक्तगण शिव पंचायतन कहकर पुकारते हैं। वजह भी खास है। यहां सिर्फ शिव ही नहीं, बल्कि उनके चारों ओर देवी-देवताओं की मानो एक विराट पंचायत सजी हुई है। बीचोंबीच आशुतोष प्रभु नीलकंठ महादेव न्यायाधीश के से भाव में विराजमान हैं, तो चारों दिशाओं में श्रीगणेश, मां महिषासुर मर्दिनी, सूर्यदेव, भगवान विष्णु और अन्नपूर्णा माता अपने-अपने मंदिरों में प्रतिष्ठित हैं। ऐसा लगता है मानो देवताओं ने अपनी अदालत सजाई हो और उनके बीच स्वयंभू शिवलिंग से प्रकट हुए महादेव धर्म की रक्षा कर रहे हों।
प्राचीन स्थापत्य, दुर्लभ विरासत
मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही भक्तों का स्वागत दोनों ओर वीर हनुमान और कालभैरव करते हैं। मंदिर की स्थापत्य कला, पत्थरों की बनावट और पुरातन शैली अपने आप में इतिहास सुनाती है। कहते हैं कि यह शिवलिंग स्वयंभू है। जलधारी और शिवलिंग के पत्थरों का अलग-अलग होना इस मान्यता को और बल देता है कि यह शिवलिंग स्वयं धरती से प्रकट हुआ। जलधारी को दो खंडों में जोडकऱ रखा गया है, जो इसके अनोखे स्वरूप को दर्शाता है।
पांडवों से जुड़ी किवदंती
स्थानीय जनश्रुति के अनुसार महाभारत काल में पांडव अपने वनवास के दौरान इस क्षेत्र में आए थे। कहते हैं, उन्होंने ही इस शिव पंचायतन की स्थापना करवाई थी। ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि विक्रम संवत 1432 यानी लगभग 650 साल पहले इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ। इसके बाद भी गांववालों ने इसे संजोने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वर्ष 2011 में ग्रामवासियों ने मिलकर पुन: जीर्णोद्धार कर इसे नई आभा दी।
सेवा-श्रृंगार की अनूठी परंपरा
यहां नीलकंठ महादेव की पूजा का क्रम भी अद्भुत है। रोज सुबह प्रभु को जलाभिषेक, बिल्वपत्र, चंदन और पुष्प अर्पित किए जाते हैं, तो शाम को भस्मी से श्रृंगार धराया जाता है। वैशाख और श्रावण मास में तीनों प्रहर की विशेष पूजा होती है। सोमवार को भोलेनाथ का विशेष श्रृंगार कर उन्हें भक्तों के दर्शन के लिए सजाया जाता है। महादेव कभी भोले-सौम्य स्वरूप में दर्शन देते हैं तो कभी रौद्र रूप में श्रृंगार की यह विविधता भक्तों को आलौकिक अनुभूति कराती है। रक्षाबंधन के दिन गांव में सबसे पहले भोलेनाथ को राखी बांधी जाती है-उसके बाद ही परिवारजन एक-दूसरे को राखी बांधते हैं।
आस्था का केंद्र, न्याय का प्रतीक
स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर केवल पूजा स्थल नहीं, आस्था का ऐसा स्तंभ है जिसके बिना कोई भी शुभ काम शुरू नहीं होता। गांव के लोग मानते हैं कि घर हो या खेत, नौकरी हो या व्यवसाय-नीलकंठ महादेव की अनुमति के बिना कोई काम पूरा नहीं होता। यहां के शांत वातावरण में जब मंदिर की घंटियां बजती हैं तो लगता है जैसे पूरा क्षेत्र शिवमय हो उठा हो। चारों ओर बैठे देवी-देवता और बीच में न्याय की आसंदी पर विराजे नीलकंठ महादेव- यही इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है। कभी मौका मिले तो एक बार इस पंचायत में हाजिरी जरूर लगाइए- हो सकता है महादेव आपको भी अपनी अदालत से आशीर्वाद देकर लौटाएं!
