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One Nation One Election : कैबिनेट ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल को मंजूरी दी, अगले सप्ताह संसद में पेश होने की संभावना

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One Nation One Election
नई दिल्ली. One Nation One Election : केंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ बिल को मंजूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य देशभर में समकालिक चुनाव आयोजित करना है। सूत्रों के अनुसार, इस बिल को अगले सप्ताह संसद में पेश किए जाने की संभावना है। इससे पहले, सितंबर में कैबिनेट ने इस पहल को समर्थन दिया था, जिसमें लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, शहरी स्थानीय निकायों और पंचायतों के चुनावों को एक साथ और 100 दिन की अवधि के भीतर संपन्न कराने का प्रस्ताव था।
असदुद्दीन ओवैसी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव का विरोध किया, कहा – ‘यह संघीय ढांचे को नष्ट करेगा’
AIMIM chief Asaduddin Owaisi
AIMIM chief Asaduddin Owaisi
एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ प्रस्ताव पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह संघीयता को नष्ट करेगा और लोकतंत्र, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है, को खतरे में डालेगा। ओवैसी ने ट्विटर पर लिखा, “मैंने हमेशा #OneNationOneElections का विरोध किया है क्योंकि यह एक समस्या का समाधान नहीं है। यह संघीयता को नष्ट करता है और लोकतंत्र को कमजोर करता है, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।”
ओवैसी ने समकालिक चुनावों की अवधारणा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की आवश्यकता मात्र बताया। उन्होंने कहा, “कई चुनाव किसी के लिए समस्या नहीं हैं सिवाय मोदी और शाह के। सिर्फ इस कारण कि उन्हें नगर निगम और स्थानीय चुनावों में भी चुनाव प्रचार की मजबूरी होती है, इसका यह मतलब नहीं है कि हमें समकालिक चुनावों की जरूरत है। लगातार और समय-समय पर होने वाले चुनाव लोकतांत्रिक जवाबदेही को बढ़ाते हैं।”  इसी बीच, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को सरकार की विफलताओं से ध्यान भटकाने की कोशिश बताया है।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन, आप भी जानें
वन नेशन, वन इलेक्शन (One Nation, One Election) एक प्रस्ताव है, जिसमें भारत के सभी चुनावों को एक ही समय पर आयोजित करने का विचार किया गया है। इस योजना का उद्देश्य राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर चुनावों की प्रक्रिया को एक साथ लाना है, ताकि चुनावी प्रक्रिया अधिक प्रभावी, किफायती और समयबद्ध हो सके। इसका विचार और प्रस्ताव राजनीतिक और प्रशासनिक सुधार के रूप में सामने आया है। आइए इस विचार के बारे में विस्तार से समझते हैं।
वन नेशन, वन इलेक्शन का तात्पर्य:
वन नेशन, वन इलेक्शन का तात्पर्य है कि भारत में लोकसभा चुनाव (सांसद चुनाव) और राज्य विधानसभा चुनाव (विधायक चुनाव) को एक साथ, एक ही समय पर आयोजित किया जाए। इसके तहत सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ चुनाव हों, जिससे देशभर में चुनावी प्रक्रिया को समकालिक रूप से पूरा किया जा सके।
इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य है:
  • चुनावों की तिथि एक ही समय पर निर्धारित करना।
  • चुनाव प्रक्रिया को एक साथ एक समय में संपन्न करना।
  • चुनावों से संबंधित खर्चों को घटाना।
  • चुनावों की स्थिरता बनाए रखना।
वन नेशन, वन इलेक्शन के लाभ:
  • चुनावों में खर्च की कमी: चुनावों के लिए भारी मात्रा में संसाधनों की आवश्यकता होती है—चाहे वह सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति हो या प्रचार सामग्री का खर्च। यदि चुनाव एक साथ होंगे, तो संसाधनों की लागत कम होगी और खर्च पर नियंत्रण पाया जा सकेगा।
  • प्रशासनिक दृष्टिकोण से सहजता: चुनावों के आयोजन से संबंधित प्रशासनिक कामों में बहुत समय और प्रयास लगता है। यदि चुनाव एक साथ होंगे, तो यह प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बना देगा। अलग-अलग चुनावों के लिए बार-बार चुनाव आयोग और अन्य प्रशासनिक संस्थाओं को तैयार करने की आवश्यकता नहीं होगी।
  • चुनाव आयोग पर दबाव कम होगा: अलग-अलग चुनावों के आयोजन में चुनाव आयोग पर भारी दबाव रहता है। एक साथ चुनाव कराए जाने से आयोग पर दबाव कम होगा, और उसकी कार्य क्षमता में सुधार हो सकता है।
  • राजनीतिक स्थिरता: अगर एक साथ चुनाव होंगे, तो राजनीतिक स्थिरता बढ़ सकती है, क्योंकि सरकार को अपनी कार्यकाल समाप्त करने और फिर से चुनावों में जाने की चिंता नहीं होगी। इससे सरकार को लंबी अवधि के लिए नीतियों के कार्यान्वयन का अवसर मिलेगा।
  • राजनीतिक दलों के लिए लाभ: राजनीतिक दलों को चुनावों के समय में बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है। एक साथ चुनाव होने पर, उन्हें चुनावी प्रचार के लिए एक ही बार खर्च करना पड़ेगा, जिससे उनके खर्च में भी कमी आएगी।
वन नेशन, वन इलेक्शन के मुद्दे:
हालांकि इस प्रस्ताव के फायदे हैं, लेकिन कुछ प्रमुख मुद्दे और चुनौतीपूर्ण पहलू भी हैं:
  • संविधान में संशोधन की आवश्यकता: भारत के संविधान में बदलाव की आवश्यकता होगी, क्योंकि वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनावों के बीच अंतर है। राज्य सरकारों के कार्यकाल की अवधि और लोकसभा के चुनावों की समय सीमा अलग-अलग होती है। इन बदलावों के लिए संविधान में संशोधन करना जरूरी होगा।
  • राज्य स्तर पर मतभेद: कुछ राज्य सरकारें इस विचार के खिलाफ हैं, क्योंकि राज्य चुनावों में उनकी स्थिति अलग होती है और उनके अनुसार उनके लिए स्वतंत्र चुनाव आवश्यक हैं। वे नहीं चाहते कि उनके चुनावों की स्वतंत्रता पर कोई असर पड़े।
  • राजनीतिक दलों की रणनीति: राजनीतिक दलों के लिए यह मुश्किल हो सकता है, क्योंकि राज्य और केंद्र सरकारों के चुनावों का अलग-अलग राजनीतिक माहौल और मुद्दे होते हैं। एक साथ चुनावों में इनका मिश्रण हो सकता है, जो कुछ दलों के लिए असुविधाजनक हो सकता है।
  • मूल मुद्दों की उपेक्षा: अगर लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ होते हैं, तो राज्य के विशिष्ट मुद्दे, जैसे कि स्थानीय विकास, रोजगार, या अन्य विशेष योजनाएं, राष्ट्रीय मुद्दों के साए में दब सकते हैं। इससे राज्य चुनावों में स्थानीय मुद्दों की अनदेखी हो सकती है।
  • अल्पकालिक चुनावों में स्थिरता की कमी: अगर किसी कारणवश सरकार की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है, तो पूरे देश में चुनाव कराना राजनीतिक अस्थिरता का कारण बन सकता है। राज्य सरकारों का कार्यकाल और केंद्र सरकार का कार्यकाल अलग-अलग हो सकता है, और उनका संयोजन कठिनाई पैदा कर सकता है।
वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए पहल और वर्तमान स्थिति:
भारत सरकार ने इस प्रस्ताव पर चर्चा शुरू की थी और कुछ कदम उठाए गए थे, जैसे कि संसद की स्थायी समिति द्वारा इस विचार पर विचार करना और मौजूदा चुनावों की समग्रता को एक साथ लाने के तरीकों पर विचार करना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य राजनेताओं ने इसे सुधार के एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में प्रस्तुत किया है। चुनाव आयोग ने भी इसे लागू करने की दिशा में विचार व्यक्त किया है, लेकिन इसे लेकर व्यापक विचार-विमर्श और संविधान में आवश्यक संशोधन की आवश्यकता होगी।
Bharat Update 9
Author: Bharat Update 9

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