
इस्लामाबाद. Pakistan’s nuclear weapons: पाकिस्तान की सेना ने अब अपने सबसे करीबी मित्र चीन को भी ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान ने चीन से मांग की है कि यदि वह ग्वादर पोर्ट पर कब्जा करना चाहता है, तो उसे पाकिस्तान को दूसरा परमाणु हमला करने की क्षमता प्रदान करनी होगी। इस मांग से चीन में नाराजगी फैल गई है और दोनों देशों के बीच ग्वादर पोर्ट को लेकर चल रही वार्ता अब रुक गई है।
चीन और पाकिस्तान के बीच विवाद
ग्वादर पोर्ट को लेकर पाकिस्तान ने चीन से एक नई शर्त रख दी है। पाकिस्तान के अनुसार, यदि चीन ग्वादर पोर्ट पर अपना नियंत्रण चाहता है, तो उसे पाकिस्तान को दूसरा परमाणु हमला करने की तकनीकी क्षमता देना होगी। यह पाकिस्तान की सेना की ओर से चीन के खिलाफ एक नया दबाव है, जो चीन के लिए परेशान करने वाली स्थिति बन गई है। चीन की सेना ग्वादर को एक महत्वपूर्ण समुद्री अड्डा बनाने की योजना बना रही है, जिसके लिए उसने CPEC (चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर) के तहत अरबों डॉलर निवेश किए हैं। अब पाकिस्तान की सेना इस निवेश का फायदा उठाने की कोशिश कर रही है और चीन को ब्लैकमेल कर रही है।
पाकिस्तान की परमाणु क्षमता पर सवाल
विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान दावा करता है कि उसके पास “दूसरे हमले” की परमाणु क्षमता है, लेकिन इसके अपने विशेषज्ञ भी इस दावे से सहमत नहीं हैं। यही कारण है कि अब पाकिस्तान ने चीन से न केवल परमाणु हमले की क्षमता प्राप्त करने की मांग की है, बल्कि इसके लिए भारी धन की भी मांग की है। पाकिस्तान का कहना है कि उसकी परमाणु शक्ति भारत के बढ़ते परमाणु सामर्थ्य के मुकाबले पर्याप्त नहीं है, और उसे एक विश्वसनीय परमाणु प्रतिकार करने की क्षमता की आवश्यकता है।
पाकिस्तान की परमाणु मिसाइल परीक्षण
2018 में पाकिस्तान ने बाबर-3 मिसाइल का परीक्षण किया था, जो कि एक पनडुब्बी से लॉन्च की जा सकती है। पूर्व उप एडमिरल (सेवानिवृत्त) अहमद सईद, जो पाकिस्तान नौसेना के पूर्व उप प्रमुख हैं, ने कहा कि इस परीक्षण के बाद पाकिस्तान की सेना को पनडुब्बी से परमाणु बम लॉन्च करने की क्षमता प्राप्त हो गई है, लेकिन यह क्षमता भारतीय नौसेना की ताकत के मुकाबले बहुत सीमित है। उन्होंने कहा कि यह पनडुब्बी युद्ध का युग है और पाकिस्तान की नौसेना अब चीन से 8 हांगोर श्रेणी की पनडुब्बियां खरीद रही है, जिनमें एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक है, जिससे पाकिस्तान की नौसेना की ताकत में कई गुना वृद्धि हो जाएगी।
चीन से परमाणु पनडुब्बियों की मांग
विश्लेषकों का कहना है कि यही कारण है कि पाकिस्तान की नौसेना चीन से परमाणु पनडुब्बियों की मांग कर रही है। पाकिस्तान के इस प्रयास में तेजी तब आई जब अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने AUKUS परमाणु पनडुब्बी सौदे पर हस्ताक्षर किए। पहले यह माना जाता था कि यह परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का उल्लंघन है। दरअसल, परमाणु पनडुब्बियां समुद्र के नीचे महीनों तक रह सकती हैं, जिससे दुश्मन उन्हें आसानी से पहचान नहीं सकता। यही कारण है कि परमाणु पनडुब्बियों को युद्ध की स्थिति में प्रतिकार करने के लिए आदर्श हथियार माना जाता है।
पाकिस्तान की सेना और चीन के बीच खटास: क्या होगा ग्वादर का भविष्य?
यह घटनाक्रम पाकिस्तान की बढ़ती परमाणु महत्वाकांक्षाओं और चीन के साथ उसकी राजनीतिक रिश्तों में नए मोड़ को दर्शाता है। पाकिस्तान अब अपनी परमाणु क्षमता को बढ़ाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है, और इसके लिए वह चीन को अपने दबाव में ला रहा है। इसने न केवल भारत की सुरक्षा को चुनौती दी है, बल्कि चीन के साथ पाकिस्तान के भविष्य के संबंधों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है।
