नई दिल्ली. Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST छात्रों द्वारा आत्महत्याओं और जातीय भेदभाव के मामलों को लेकर यूजीसी (University Grants Commission) से महत्वपूर्ण डेटा पेश करने का निर्देश दिया है। यह आदेश रोहित वेमुला और पायल तड़वी की मां द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया। कोर्ट ने कहा कि यूजीसी को केंद्रीय, राज्य, निजी और मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालयों से जातीय भेदभाव और छात्रों की आत्महत्याओं से संबंधित आंकड़े इकट्ठा करने चाहिए।
जातीय भेदभाव और आत्महत्याओं के आंकड़े जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने खासतौर से SC और ST वर्ग के छात्रों द्वारा की गई आत्महत्याओं के आंकड़े मांगते हुए कहा कि इस विषय में संबंधित डेटा अदालत के समक्ष पेश किया जाए। याचिका में यह भी मांग की गई है कि SC/ST छात्रों के खिलाफ होने वाले जातीय भेदभाव के मामलों को लेकर एक मजबूत और प्रभावी तंत्र स्थापित किया जाए, ताकि संस्थान इन शिकायतों को गंभीरता से लें और भेदभाव को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
समान अवसर सेल्स पर रिपोर्ट पेश करें UGC
कोर्ट ने यूजीसी से यह भी निर्देश दिया कि वह 2012 में लागू किए गए UGC (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता के संवर्धन) रेग्युलेशन के तहत स्थापित समान अवसर सेल्स (Equal Opportunity Cells) द्वारा की गई शिकायतों और उनके समाधान पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करें। कोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यह मामला गंभीर है, सुनवाई नियमित रूप से करने का निर्णय लिया है।
IITs में आत्महत्याओं का डेटा
कोर्ट ने विशेष रूप से 2004 से 2024 के बीच IITs में हुई 115 आत्महत्याओं का डेटा प्रस्तुत किया और इस बात पर जोर दिया कि इन आत्महत्याओं के मामलों की ठीक से जांच होनी चाहिए। अदालत ने कहा कि 2012 के रेग्युलेशन को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए एक मजबूत और कारगर तंत्र की जरूरत है।
रोहित और पायल का दर्दनाक मामला
रोहित वेमुला और पायल तड़वी के मामले ने पूरे देश को झकझोर दिया था। रोहित वेमुला, हैदराबाद विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर थे, जिन्होंने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या की थी। उन पर आरोप था कि उन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से उन्होंने यह दुखद कदम उठाया। इसके तीन साल बाद, पायल तड़वी, टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज, मुंबई में एक मेडिकल छात्रा ने 22 मई 2019 को आत्महत्या कर ली थी। पायल के मामले में भी आरोप था कि उसे जातीय भेदभाव का शिकार बनाया गया था।
मजबूत तंत्र की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश दिया और इस मामले में जल्द से जल्द ठोस कदम उठाने की आवश्यकता जताई। कोर्ट ने यह भी कहा कि संबंधित संस्थानों को अपने अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच संवेदनशीलता लाने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी छात्र के साथ भेदभाव न हो और उन्हें अपनी पढ़ाई के दौरान हर संभव सुरक्षा मिल सके।
गंभीर मुद्दे पर गहरी नज़र
यह आदेश एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल SC/ST छात्रों के अधिकारों की रक्षा करेगा, बल्कि उच्च शिक्षा में जातीय भेदभाव की समस्या को दूर करने के लिए संस्थाओं को जिम्मेदार ठहराएगा। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम इस बात की ओर इशारा करता है कि न्याय व्यवस्था अब इस गंभीर मुद्दे पर गहरी नज़र रखेगी और सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में किसी भी छात्र को जातिवाद के कारण मानसिक या शारीरिक कष्ट न सहना पड़े।