
नई दिल्ली. Supreme Court’s big decision: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार, 20 दिसंबर को बैंकों को क्रेडिट कार्ड भुगतान में देरी पर उच्च ब्याज दर लगाने की अनुमति दे दी है। इससे पहले, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) द्वारा लगाए गए 30% वार्षिक ब्याज की सीमा को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। अब बैंक क्रेडिट कार्ड डिफॉल्ट पर अधिक ब्याज वसूल सकेंगे, जो 49% तक हो सकता है।
इस फैसले ने 16 साल पुराने विवाद का समाधान किया है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे, ने प्रमुख बैंकों की याचिकाओं पर सुनवाई की। बैंकों ने तर्क किया था कि एनसीडीआरसी को क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दरों की अधिकतम सीमा तय करने का अधिकार नहीं है।
2008 में क्या हुआ था?
2008 में, एनसीडीआरसी ने क्रेडिट कार्ड पर ब्याज दर को 30% प्रति वर्ष तक सीमित कर दिया था। आयोग का कहना था कि क्रेडिट कार्ड बिलों पर अधिक ब्याज लगाना सूदखोरी के समान है और यह उपभोक्ताओं के साथ अन्याय है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया है, जिससे बैंकों को बिल भुगतान में देरी पर खुद ब्याज दर तय करने की स्वतंत्रता मिल गई है।
ग्राहकों के लिए यह फैसले का क्या असर होगा?
भारत में लगभग 30% क्रेडिट कार्ड धारक पहले से ही भुगतान में डिफॉल्ट कर चुके हैं। इस फैसले के बाद, इन ग्राहकों पर वित्तीय दबाव और बढ़ सकता है, क्योंकि अब बैंक ज्यादा ब्याज दर वसूलने का अधिकार रखते हैं। दूसरी ओर, कुछ विकसित देशों जैसे कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने इस प्रकार के शुल्क पर कड़े नियम लगाए हैं। वहां क्रेडिट कार्ड ब्याज दरें आमतौर पर 9.99% से 24% के बीच होती हैं। भारत में अब यह स्थिति बदल सकती है, जिससे ग्राहकों को ज्यादा भुगतान करना पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय उपभोक्ताओं के लिए एक चेतावनी हो सकती है, क्योंकि इसे लागू होने के बाद, क्रेडिट कार्ड धारकों को अधिक ब्याज दरों का सामना करना पड़ सकता है, यदि वे समय पर बिल का भुगतान नहीं करते।
