
नई दिल्ली. Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर सख्त रुख अपनाया है और कहा है कि कानून के शासन में बुलडोजर से न्याय करना पूरी तरह अस्वीकार्य है। उच्चतम न्यायालय ने शनिवार को स्पष्ट रूप से कहा कि नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्ति तोड़कर दबाना न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता। प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह टिप्पणी की कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या अवैध संरचनाओं को हटाने से पहले कानून की पूरी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “बुलडोजर से न्याय नहीं किया जा सकता। अगर यह तरीका अपनाया गया, तो संविधान के अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार का उल्लंघन होगा।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बुलडोजर के जरिए रातों-रात किसी की संपत्ति तोड़ना, बिना परिवार को कोई समय दिए, पूरी तरह अनुचित है। कोर्ट ने राज्य सरकारों को यह निर्देश भी दिया कि सड़क परियोजनाओं में अतिक्रमण की स्थिति का पता लगाने से पहले वे सभी संबंधित दस्तावेजों और मानचित्रों का सर्वेक्षण करें। यदि अतिक्रमण पाया जाता है, तो संबंधित व्यक्ति को नोटिस दिया जाए और यदि वह नोटिस पर आपत्ति उठाता है, तो राज्य को एक ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ (कारण सहित आदेश) जारी करना होगा।
यह मामला 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक मकान को ध्वस्त करने से जुड़ा था। उस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया था, क्योंकि मकान एक सड़क परियोजना के लिए जबरन तोड़ दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह साफ कर दिया है कि नागरिकों के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करने वाली किसी भी अव्यवस्थित कार्रवाई को मंजूरी नहीं दी जा सकती।
