
जयपुर. Swami Vivekanand Model School: राजस्थान के शिक्षकों की सेवा शर्तों और वेतन संरचना को लेकर लंबे समय से सवाल उठ रहे हैं। लेकिन, विशेषकर स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल स्कूलों में प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों की स्थिति चिंताजनक और असमानता भरी बनी हुई है। एक दशक बीत जाने बाद भी इनके प्रोत्साह भत्ते में कोई संशोधन नहीं किया गया है। इस बीच, सातवां वेतन आयोग लागू हुआ, मूल वेतन में तीन गुना तक बढ़ोतरी हुई, लेकिन भत्ते की गणना आज भी पुराने छठे वेतन आयोग के मूल वेतन पर आधारित की जा रही है। राज्य सरकार की ओर से इस उपेक्षा ने इन शिक्षकों के भीतर नाराजगी और असंतोष को जन्म दिया है। शिक्षा विभाग और राजस्थान माध्यमिक शिक्षा परिषद ने अब तक कोई संज्ञान नहीं लिया, जिससे इस विशिष्ट शिक्षा प्रणाली के तहत कार्यरत शिक्षक खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
राजसमंद जिले में सात मॉडल स्कूल, लेकिन सबमें एकसी पीड़ा
राजस्थान के राजसमंद जिले की बात करें तो यहां स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल स्कूलों की संख्या सात है। इन सभी में प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए शिक्षक और स्टाफ कार्यरत है। नियमों के अनुसार उनके मूल वेतन का 10 प्रतिशत प्रोत्साहन भत्ता और 2.5 प्रतिशत प्रतिनियुक्ति भत्ता मिलना चाहिए। यह भत्ता भी स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल स्कूलों में नियुक्ति के लिए विशेष चयन और सेवा शर्तें नियम 2016 के तहत निर्धारित किया गया है। हालांकि ये नियम बने जरूर, लेकिन इसके बावजूद भत्ता न तो बढ़ा और न ही इसमें महंगाई के अनुरूप कोई परिवर्तन किया गया। जबकि बाकी विभागों में सातवें वेतन आयोग के तहत मूल वेतन में वृद्धि के साथ ही भत्ते भी संशोधित किए गए हैं।
कैसे और क्यों हुआ भत्तों में ये भेदभाव?
वर्ष 2016 के नियमों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शिक्षक को उनके मूल वेतन(बेसिक+ग्रेड) का दस प्रतिशत प्रोत्साहन राशि दी जाएगी, लेकिन यह गणना 31 दिसंबर 2016 तक के वेतन के आधार पर ही फिक्स कर दी गई। इसी साल के अंत में छठे वेतन आयोग की जगह सातवां वेतन आयोग लागू कर दिय गया, जिससे अधिकांश शिक्षकों का मूल वेतन तीन गुना तक बढ़ गया।
यूं समझें गणित
- व्याख्याता में छठा वेतन आयोग में 17230 और सातवें वेतन आयोग में 44300 रूपए
- वरिष्ठ शिक्षक का छठे वेतन आयोग में 14430 और सातवें वेतन आयोग में 37800
- शिक्षक का छठे वेतन आयोग मेकं 12900 और सातवें वेतन आयोग लगने के बाद 33800 रुपए हो गए।
अब ये सवाल उठता है कि जब वेतन तीन गुना बढ़ चुका ळै, तो उसी अनुपात में प्रोत्साहन भत्ता क्यों नहीं बढ़ा?
भत्ते का गणित और शिक्षक की हकीकत
जब किसी शिक्षक मूल वेतन 44300 हो, तो दस प्रतिशत प्रोत्साहन भत्ता 4430 रुपए बनता है। लेकिन उन्हे आज 1723(2016 के मूल वेतन के 10 प्रतिशत) ही दिए जा रहे हैं। इसी तरह 2.5 प्रतिशत प्रतिनियुक्ति भत्ता भी 2016 के मूल वेतन पर आधारित दिया जा रहा है। यानी एक ओर शिक्षकों का कु वेतन बढ़ा है, दूसरी ओर भत्तों का आंकड़ा पुराने समय में ही अटका हुआ है। यह भत्ते न बढऩा केवल एक आर्थिक असमानता नहीं, बल्कि सरकार की वचनबद्धता पर भी सवाल खड़ा करता है।
समान सेवा, असमान अधिकार: गैर शैक्षणिक स्टाफ की अनदेखी
मॉडल स्कूलों में केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि प्रयोगशाला सहायक, पुस्तकालय अध्यक्ष और मंत्रालयिक कार्मिक भी प्रतिनियुक्ति पर काम करते हैं। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इन्हें कोई प्रोत्साहन या प्रतिनियुक्ति भत्ता नहीं दिया जाता। यह एक और बड़ा विरोधाभास है। इन कर्मचारियों की जिम्मेदारियां भी विद्यारलय की व्यवस्था को चलाने में अहम होती है, लेकिन भत्तों में उन्हे शामिल न करना सरासर भेदभाव है।
लंबी सेवाओं पर रोक, चार साल बाद भत्ता बंद!
रेसटा के प्रदेशाध्यक्ष मोहरसिंह सलावद बताते हैं कि प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत शिक्षकों और कर्मचारियों को केवल चार वर्षों तक ही यह भत्ता दिया जाता है। उसके बाद, चाहे शिक्षक वहीं कार्यरत रहे, चाहे उसकी सेवाएं बढ़ीं हों, भत्ता तत्काल बंद कर दिया जाता है। यह स्थिति समान काम, समान वेतन के सिद्धांत के विरूद्ध जाती है।
मॉडल स्कूल में अतिरिक्त सेवा, फिर भी कोई लाभ नहीं!
राजकीय मॉडल स्कूलों की कार्यप्रणाली सामान्य स्कूलों से कहीं अधिक कठोर है। यहां शिक्षकों की समय सारिणी भी सामान्य विद्यालयों की तुलना में अधिक है। गर्मी में सुबह 7.30 से शाम 3.30 बजे तक आठ घंटे, सर्दी में सुबह 8.30 से शाम 4.30 बजे तक आठ घंटे सेवा देनी पड़ रही है। जबकि सामान्य स्कूलों में यह समय छह घंटे तक सीमित है। यानी मॉडल सकूलों के शिक्षक प्रतिदिन दो घंटे अतिरिक्त सेवा दे रहेहैं, लेकिन उसके बदले उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं मिल रहा है।
प्रतिनियुक्ति की अवधारणा ही सवालों के घेरे में
जब किसी शिक्षक को प्रतिनियुक्त किया जाता है, तो उसका तात्पर्य होता है कि विशेष योग्यता और सेवाओं के आधार पर चुना गया कार्मिक, जिसे अपेक्षाकृत अधिक कार्य दायित्व और अपेक्षाएं सौंप दी जाती है। ऐसे में उन्हे मिलने वाले भत्तों में कटौती या स्थायित्व न होना पूरी अवधारणा को ही कमजोर करता है।
शिक्षक संघ रेस्टा की प्रमुख मांगे
- प्रोत्साहन एवं प्रतिनियुक्ति भत्ते की गणना सातवें वेतन आयोग के मूल वेतन के आधार पर हो।
- चार वर्ष के बाद भी भत्ता बंद न किया जाए। सेवा पूरी होने तक जारी रखा जाए।
- गैर शैक्षणिक कर्मचारियों को भी भत्ते का लाभ दिया जाए।
- मॉडल स्कूलों में अतिरिक्त सेवा समय के लिए विशेष भत्ता या सुविधा दी जाए।
सरकार की चुप्पी और शिक्षकों का बढ़ता असंतोष
एक तरफ राज्य सरकार शिक्षा के स्तर को सुधारने का दावा कर रही है, वहीं दूसरी तरफ मॉडल स्कूलों जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण संस्थानों में कार्यरत कर्मचारियों की सुध नहीं ली जा रही है। इससे एक तरफ कर्मचारियों का मनोबल टूट रहा है, तो दूसरी तरफ ये स्कूल भी अपने उद्देश्य से भटकने लगे हैं। अगल सरकार समय रहते इस ओर ध्यान नहीं देती है, तो भविष्य में शिक्षक आंदोलन, स्कूलों की गुणवत्ता में गिरावट और कर्मचारियों की न्यायिक लड़ाइयां देखने को मिल सकती है।
समानता की उम्मीद में वर्षों से टिके हैं शिक्षक
राज्य के कुल 134 स्वामी विवेकानंद राजकीय मॉडल स्कूलों में कार्यरत शिक्षक और कर्मचारी आज भी समानता और न्याय की आस लगाए बैठे हैं। जब हर दूसरे सरकारी विभाग में सातवें वेतन आयोग लागू हो चुका है, तो इन्हें क्यों अछूत की तरह व्यवहार किया जा रहा हैï? अब वक्त आ गया है कि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग इस उपेक्षा को खत्म करें, और इन मॉडल स्कूलों को वास्वत में मॉडल बनाएं जहां शिक्षक को उनका अधिकार मिले और विद्यार्थियों को उत्कृष्ट शिक्षा।
