
वॉशिंगटन. Tariff On Brazil: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक मंच पर हलचल मचा दी है। इस बार निशाने पर है भारत का बड़ा रणनीतिक साझेदार और BRICS समूह का संस्थापक सदस्य ब्राजील, जिस पर ट्रंप ने 50 प्रतिशत का भारी-भरकम आयात शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया है। यह टैरिफ 1 अगस्त से प्रभावी होगा, जिससे दोनों देशों के बीच बढ़ते कूटनीतिक तनाव की आहट तेज हो गई है। दिलचस्प बात यह है कि यह कदम ऐसे वक्त पर उठाया गया है जब ब्राजील के पूर्व राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो पर सत्ता पलटने की साजिश रचने के गंभीर आरोपों में मुकदमा चल रहा है। ट्रंप ने इस केस को सीधे-सीधे अंतरराष्ट्रीय स्तर की शर्मिंदगी बताते हुए इसे एक डायन शिकार करार दिया है और ब्राजील सरकार को आड़े हाथों लिया है।
लूला को चेतावनी : बोलसोनारो पर मुकदमा बंद करो
राष्ट्रपति ट्रंप ने ब्राजील के मौजूदा राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा को बाकायदा पत्र लिखकर चेताया कि बोलसोनारो के खिलाफ चल रही कानूनी कार्रवाई रोकी जाए। ट्रंप ने स्पष्ट किया कि वॉशिंगटन अब ब्राजील के कारोबारी तौर-तरीकों की गहन जांच शुरू करेगा। बोलसोनारो, जो ट्रंप के करीबी सहयोगी माने जाते हैं, पर आरोप है कि उन्होंने 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में हार के बाद सेना के समर्थन से तख्तापलट की साजिश रची। हालांकि सेना और प्रशासन ने उनका साथ नहीं दिया और सत्ता शांतिपूर्ण तरीके से लूला डा सिल्वा के हाथों में चली गई। बोलसोनारो इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज कर चुके हैं और इसे राजनीतिक बदले की कार्रवाई बता चुके हैं।
ट्रंप ने अपनी मुश्किलों से जोड़ा मुद्दा
ट्रंप ने इस घटनाक्रम को अपने ऊपर चल रहे मुकदमों से जोड़ते हुए कहा कि बोलसोनारो की तरह उन्हें भी बेवजह निशाना बनाया जा रहा है। ट्रंप खुद अमेरिका में 2020 के चुनाव नतीजे पलटने की कोशिश, दंगे भडक़ाने और गोपनीय दस्तावेज छिपाने जैसे कई मामलों में अदालतों में घिरे हुए हैं। उन्होंने कहा कि बोलसोनारो को उसी च्च्राजनीतिक प्रतिशोधज्ज् का शिकार बनाया जा रहा है, जिसका सामना वह खुद कर रहे हैं।
ब्राजील पहले ही जता चुका है नाराजगी
यह पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने बोलसोनारो के समर्थन में आवाज उठाई हो। इससे पहले उनकी तीखी टिप्पणियों पर ब्राजील ने अमेरिका के चार्ज डी अफेयर्स को तलब कर सख्त आपत्ति जताई थी। अब इस नए टैरिफ से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक दरार और चौड़ी हो सकती है।
भारत को भी होगा असर
भारत और ब्राजील के रिश्ते पिछले कुछ सालों में ब्रिक्स के तहत काफी मजबूत हुए हैं। ऊर्जा, कृषि और व्यापारिक क्षेत्र में दोनों देश एक-दूसरे के अहम सहयोगी रहे हैं। ऐसे में ब्राजील पर अमेरिकी टैरिफ का असर भारत की रणनीतिक स्थिति पर भी पड़ सकता है। हालांकि अमेरिकी बाजार में ब्राजील के सस्ते उत्पाद महंगे होने से भारत को कुछ प्रतिस्पर्धात्मक फायदा जरूर मिल सकता है, लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को ब्रिक्स के भीतर संतुलन साधने में नई चुनौतियां झेलनी पड़ सकती हैं।
1 अगस्त से लगेंगे नए शुल्क
ट्रंप ने अपने पत्र में साफ लिखा है कि ब्राजील से आने वाले तमाम उत्पादों पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाएगा और यह 1 अगस्त से लागू होगा। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब ट्रंप प्रशासन ने उन देशों पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा अधिक है। हाल ही में कई अन्य व्यापारिक साझेदार देशों को भी इसी तरह के पत्र भेजकर च्फेयर ट्रेडज् के लिए नई शर्तें थोपने की कोशिश की गई है।
ब्राजील का जवाब क्या होगा?
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या ब्राजील भी अमेरिका के इस फैसले का जवाब देगा? क्या वह भी अमेरिकी उत्पादों पर जवाबी शुल्क लगाएगा या फिर विश्व व्यापार संगठन का दरवाजा खटखटाएगा? इस पर दुनिया की निगाहें टिकी हैं। इसके साथ ही ब्रिक्स के अन्य बड़े सदस्य भारत, चीन और रूस किस तरह प्रतिक्रिया देंगे, यह भी महत्वपूर्ण होगा। क्या ये देश इस मुद्दे पर खुलकर बोलसोनारो के साथ खड़े होंगे या फिर कूटनीतिक चुप्पी साधेंगे?
मामला सिर्फ टैरिफ तक सीमित नहीं रहेगा
विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद सिर्फ एक व्यापारिक शुल्क का मामला नहीं है। यह अमेरिका-ब्राजील के रिश्तों की बुनियाद को झकझोर सकता है और ब्रिक्स जैसे मंच पर अमेरिका की रणनीति को खुलकर सामने लाता है। अमेरिका लंबे समय से ब्रिक्स देशों के बढ़ते प्रभाव को कमजोर करने की कोशिश करता रहा है, ताकि चीन और रूस जैसे देशों को अलग-थलग किया जा सके। ब्राजील पर दबाव बनाकर ट्रंप उसी रणनीति को नया विस्तार दे सकते हैं।
क्या बोलेगा विश्व?
आखिरकार, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ब्राजील ट्रंप की धमकी के आगे झुकेगा या फिर वैश्विक मंच पर अमेरिका को घेरने की कोशिश करेगा। साथ ही बोलसोनारो पर चल रहा केस ब्राजील की आंतरिक राजनीति को किस मोड़ पर ले जाएगा, यह आने वाले महीनों में साफ होगा। कुल मिलाकर, ट्रंप का यह टैरिफ बम दुनिया को यह याद दिला रहा है कि वैश्विक राजनीति और व्यापार किस तरह एक-दूसरे से गुथे हुए हैं और किस तरह एक नेता की चि_ी से पूरी दुनिया के समीकरण बदल सकते हैं।
क्या टेरिफ वैश्विक राजनीति या कूटनीति का हिस्सा
टैरिफ (या व्यापार शुल्क) पर दुनिया भर में दशकों से तीखी बहस चल रही है, क्योंकि यह केवल एक आर्थिक नीति नहीं है, बल्कि यह वैश्विक राजनीति, कूटनीति और गरीब-अमीर देशों के रिश्तों को भी सीधा प्रभावित करता है। आइए इसे 3 हिस्सों में सरलता से समझते हैं:
दुनिया में Tariff लगाने के क्या नुकसान होते हैं?
उपभोक्ताओं पर सीधा असर
- टैरिफ विदेशी सामान को महंगा बना देता है।
- इससे उपभोक्ताओं को वही चीज़ पहले से ज्यादा कीमत पर खरीदनी पड़ती है।
- महंगाई बढ़ती है, खासकर उन देशों में जो कई जरूरी सामान (कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, कृषि उत्पाद) इंपोर्ट करते हैं।
- व्यापार युद्ध शुरू हो जाता है
- अक्सर देश जवाबी कार्रवाई करते हैं जैसे अमेरिका ने चीन पर टैरिफ लगाया, तो चीन ने भी अमेरिकी सामान पर टैरिफ लगा दिया।
- इससे दो देशों के बीच ट्रेड वार शुरू होता है, जो पूरी सप्लाई चेन को बिगाड़ सकता है।
वैश्विक सप्लाई चेन पर असर
- आजकल एक ही सामान कई देशों में बनता है जैसे आईफोन के पुर्जे चीन, जापान, कोरिया, भारत से आते हैं।
- एक देश टैरिफ बढ़ाता है तो पूरा नेटवर्क महंगा और धीमा हो जाता है।
- आर्थिक विकास धीमा होता है
- कंपनियां महंगे आयात के कारण निवेश में कटौती कर सकती हैं।
- गरीब देशों के निर्यात पर असर पड़ता है जैसे भारत, बांग्लादेश जैसे देशों के कपड़े या कृषि उत्पाद ज्यादा महंगे हो जाते हैं।
भ्रष्टाचार और चोरी का खतरा
ज्यादा टैरिफ से स्मगलिंग बढ़ती है, लोग गैरकानूनी तरीके से सामान लाते हैं ताकि टैरिफ न देना पड़े।
वैश्विक मंच पर टैरिफ को लेकर क्या प्रतिक्रियाएं होती हैं?
- विश्व व्यापार संगठन का दखल
- विश्व व्यापार संगठन का दखल की जिम्मेदारी है कि फ्री ट्रेड को बढ़ावा दिया जाए।
- विश्व व्यापार संगठन का दखल देशों को अनावश्यक टैरिफ लगाने से रोकने की कोशिश करता है।
- अगर कोई देश अचानक ज्यादा टैरिफ लगा दे तो दूसरा देश विश्व व्यापार संगठन का दखल में केस कर सकता है। उदाहरण के तौर पर अमेरिका ने चीन पर स्टील टैरिफ लगाए थे। चीन विश्व व्यापार संगठन में गया, केस अभी भी चल रहा है।
मुक्त व्यापार समझौते
- कई देश आपस में एफटीए साइन करते हैं, ताकि टैरिफ या तो खत्म हों या बहुत कम हों।
- यूरोपीय संघ, एनएएफटीए (अब यूएसएमसीए), आरसीईपी (एशिया) जैसे समझौते इसी वजह से बने हैं।
विकासशील देश की शिकायत
- गरीब या विकासशील देश कहते हैं कि अमीर देश टैरिफ के जरिए बाजार बंद कर देते हैं।
- खासकर कृषि उत्पादों पर अमीर देश भारी सब्सिडी और टैरिफ लगाकर गरीब देशों के किसानों को नुकसान पहुंचाते हैं।
राजनीतिक दबाव का औजार
- टैरिफ अक्सर कूटनीति का हथियार बन जाता है।
- उदाहरण: ट्रंप ने चीन, यूरोप, मैक्सिको, भारत — सब पर भारी टैरिफ लगाकर दबाव बनाया कि वे नए व्यापार समझौते साइन करें।
आज की वैश्विक प्रतिक्रिया- मौजूदा बहस
- कई अर्थशास्त्री और वैश्विक संस्थाएं कहती हैं कि अधिक टैरिफ फ्री ट्रेड को मारता है। वैश्विक मंदी का खतरा बढ़ता है। महंगाई को बढ़ाता है।
- अमेरिका, चीन, यूरोप-सबसे बड़े खिलाड़ी- टैरिफ को रणनीतिक हथियार मानते हैं, खासकर टेक्नोलॉजी, सेमीकंडक्टर, ग्रीन एनर्जी में।
- भारत जैसे देश मिश्रित रुख अपनाते हैं-कुछ सेक्टर में घरेलू उद्योग को बचाने के लिए टैरिफ रखते हैं, पर कई एफटीएएस से आयात भी खोलते हैं।
हालिया उदाहरण
- अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर: 2018 से शुरू, 500 अरब डॉलर तक के सामान पर टैरिफ लगे।
- यूरोप ने चीन के सोलर पैनल और स्टील पर टैरिफ लगाया।
- अमेरिका ने भारत पर स्टील-एल्युमिनियम टैरिफ लगाया, भारत ने जवाबी टैरिफ से बाद में 28 अमेरिकी वस्तुओं को महंगा किया।
- 2024-25 में ग्रीन टेक्नोलॉजी (बैटरी, इलेक्ट्रिक गाडिय़ां) में भी भारी टैरिफ चलन में हैं।
