
Trump Government: शिक्षा को सामान्यत: राजनीति से ऊपर माना जाता है, लेकिन अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने हाल ही में एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने उ‘च शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय छात्रों की स्थिरता को सीधे चुनौती दी है। ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की SEVP की मान्यता रद्द कर दी है, जिसके चलते विश्वविद्यालय अब अंतरराष्ट्रीय छात्रों को दाखिला नहीं दे सकता। यह निर्णय अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और हार्वर्ड पर लगे गंभीर आरोपों के आधार पर लिया गया है। इस निर्णय से हार्वर्ड में पढ़ रहे लगभग 788 भारतीय छात्र सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं, जिनका भविष्य अब अधर में लटका हुआ है।
अमेरिका की कार्रवाई: क्या है पूरा मामला?
18 मई 2025 को अमेरिकी गृह सुरक्षा सचिव क्रिस्टी नोएम ने एक पत्र जारी कर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को SEVP कार्यक्रम से तत्काल प्रभाव से बाहर कर दिया। इस पत्र में कहा गया कि हार्वर्ड पर कई गंभीर आरोप हैं, जिनमें चीन सरकार से संदिग्ध संबंध, विश्वविद्यालय परिसर में आतंकवाद के समर्थन और यहूदी छात्रों के खिलाफ हिंसा को नजरअंदाज करना शामिल है। ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि हार्वर्ड प्रशासन ने अमेरिकी कानूनों का उल्लंघन करते हुए अपने परिसर को ऐसे तत्वों का अड्डा बना दिया है जो अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ हैं।
क्रिस्टी नोएम का सख्त बयान
गृह सुरक्षा सचिव ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि विदेशी छात्रों को दाखिला देना विश्वविद्यालयों का अधिकार नहीं, बल्कि एक विशेषाधिकार है। हार्वर्ड को कई बार सुधार का मौका दिया गया, लेकिन उन्होंने कानून के अनुरूप कार्य नहीं किया। इसलिए उनकी SEVP मान्यता रद्द की जाती है। यह सभी अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए एक चेतावनी है।”
हार्वर्ड की प्रतिक्रिया: ‘यह राजनीति प्रेरित कदम है’
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने इस फैसले को ‘प्रतिशोधात्मक’ और ‘गैरकानूनी’ करार दिया है। एक आधिकारिक बयान में विश्वविद्यालय ने कहा कि सरकार का यह कदम विश्वविद्यालय को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है। यह न केवल हमारे अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए संकट पैदा करता है, बल्कि अमेरिका की उ‘च शिक्षा प्रणाली की साख पर भी सवाल उठाता है।
788 भारतीय छात्रों पर संकट
हर साल हार्वर्ड में 500 से 800 के बीच भारतीय छात्र पढ़ते हैं। वर्ष 2025 में यह संख्या 788 है। अब ये छात्र या तो किसी अन्य मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में स्थानांतरित हों या फिर अमेरिका छोड़ें। यह निर्णय विशेष रूप से उन छात्रों के लिए दुखदायी है, जिन्होंने हाल ही में दाखिला लिया है या जिनकी पढ़ाई के महत्वपूर्ण चरण अभी बाकी हैं।
दिल्ली के छात्र रोहित शर्मा, जो हार्वर्ड में स्नातकोत्तर कर रहे हैं, कहते हैं कि मैंने अभी अपना दूसरा सेमेस्टर शुरू किया है और गर्मी की रिसर्च परियोजना की तैयारी में लगा था। फिर यह खबर आई और सबकुछ बदल गया। न मैं समझ पा रहा हूं कि अब क्या करना है और न यह कि कहां जाना है।
क्यों उठा यह कदम? अमेरिका की ओर से प्रमुख आरोप
- चीन से संबंध: ट्रंप प्रशासन का दावा है कि हार्वर्ड और चीन सरकार के बीच गहरे संबंध हैं, जो अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं।
- असहिष्णुता और हिंसा: प्रशासन ने आरोप लगाया है कि हार्वर्ड प्रशासन ने यहूदी छात्रों के खिलाफ नफरत भरे व्यवहार को अनदेखा किया है। परिसर में कथित तौर पर ऐसे छात्र और समूह सक्रिय हैं जो अमेरिका विरोधी विचारधारा फैलाते हैं।
- अतिवाद और आतंकवाद समर्थन: हार्वर्ड पर यह भी आरोप है कि उन्होंने अतिवादी तत्वों को बढ़ावा दिया है और आतंकवाद के प्रति सहानुभूति दिखाने वालों को खुला मंच दिया।
कानूनी पहलू और विश्वविद्यालय की अगली रणनीति
गृह सुरक्षा विभाग द्वारा भेजे गए पत्र में हार्वर्ड को 72 घंटे के भीतर “आवश्यक जानकारी” प्रस्तुत करने को कहा गया है, ताकि उनकी SEVP मान्यता बहाल की जा सके। यदि ऐसा नहीं होता, तो वर्तमान छात्रों को कानूनी रूप से अमेरिका में रहने का अधिकार नहीं रहेगा। हार्वर्ड अब इस निर्णय को अदालत में चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। विश्वविद्यालय के वकीलों का मानना है कि सरकार ने बिना उचित जांच और कानूनी प्रक्रिया के ही यह कदम उठाया है, जो संविधान के खिलाफ है।
दूसरे विश्वविद्यालयों की भूमिका और कठिनाई
हार्वर्ड से निकाले जा रहे छात्रों को अमेरिका के अन्य विश्वविद्यालयों में स्थानांतरण करना होगा। हालांकि, यह आसान नहीं है क्योंकि-
- अधिकांश विश्वविद्यालयों में नामांकन की अंतिम तिथियां बीत चुकी हैं।
- छात्रवृत्तियों के लिए अब सीमित अवसर हैं।
- मिड-टर्म में कोर्स ट्रांसफर करना शिक्षाविदों और प्रशासनिक दृष्टि से कठिन होता है।
- कई संस्थान नए छात्रों को इतनी जल्दी समायोजित नहीं कर पाएंगे।
कुछ विश्वविद्यालय मदद का हाथ बढ़ा रहे हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा बहुत ’यादा है। इससे कई छात्रों के करियर, वित्त और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ सकता है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और कूटनीतिक प्रभाव
भारत सरकार ने इस मामले पर आधिकारिक तौर पर अभी कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन विदेश मंत्रालय स्थिति की निगरानी कर रहा है। भारतीय दूतावास छात्रों की सहायता के लिए विशेष हेल्पलाइन शुरू करने पर विचार कर रहा है। इस घटना ने वैश्विक शिक्षा में अमेरिका की साख पर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। कई विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की कार्रवाइयों से अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बीच लोकप्रियता घटेगी, और छात्र अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया या यूरोपीय देशों की ओर रुख कर सकते हैं।
क्या यह ट्रंप की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
2024 के चुनावों के बाद से ट्रंप ने फिर से ‘अमेरिका फस्र्ट’ नीति को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। हार्वर्ड पर यह कार्रवाई इसी दिशा में एक प्रतीकात्मक कदम के रूप में देखा जा रहा है। ट्रंप का यह संदेश स्पष्ट है – अमेरिका अब केवल उन्हीं संस्थानों को समर्थन देगा जो पूरी तरह से राष्ट्रीय हितों के अनुरूप कार्य करें।
शिक्षा पर राजनीति की छाया
यह घटना उ‘च शिक्षा के क्षेत्र में एक चिंताजनक उदाहरण है जहां राजनीतिक निर्णयों का सीधा असर छात्रों की जिंदगी पर पड़ता है। 788 भारतीय छात्र न केवल अपने शैक्षणिक भविष्य को लेकर चिंतित हैं, बल्कि मानसिक और आर्थिक दबाव भी झेल रहे हैं। अमेरिका जैसे देश में, जहां अंतरराष्ट्रीय छात्रों का योगदान अरबों डॉलर का होता है, वहां ऐसी कार्रवाई वैश्विक शिक्षा व्यवस्था के लिए झटका है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि हार्वर्ड अपनी मान्यता बहाल करने में सफल होता है या नहीं, और भारतीय सरकार अपने छात्रों की सहायता के लिए कौन से कदम उठाती है। लेकिन इतना तो तय है कि यह मामला आने वाले महीनों में शिक्षा, राजनीति और कूटनीति के स्तर पर कई नई बहसों को जन्म देगा।
क्या है एसईवीपी और क्यों जरूरी है?
एसईवीपी अमेरिकी आव्रजन व्यवस्था का हिस्सा है, जो विश्वविद्यालयों को अंतरराष्ट्रीय छात्रों को पढ़ाने की अनुमति देता है। यदि किसी संस्थान की एसईवीपी मान्यता रद्द होती है:
- वह कोई भी विदेशी छात्र नहीं ले सकता
- वर्तमान छात्र एफ-1 वीजा के तहत अमेरिका में रह नहीं सकते
- उन्हें किसी अन्य एसईवीपी-प्रमाणित संस्थान में स्थानांतरण करना पड़ता है
भारत की स्थिति
- अभी तक भारत सरकार की ओर से कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। हालांकि सूत्रों के अनुसार:
- भारतीय दूतावास ने स्थिति की निगरानी शुरू कर दी है
- संकटग्रस्त छात्रों के लिए हेल्पलाइन नंबर जारी किए जा सकते हैं
- छात्रों को स्थानांतरण या कानूनी सहायता दिलाने के प्रयास तेज किए जा सकते हैं
अब आगे क्या?
- हार्वर्ड को 72 घंटे में दस्तावेज देने होंगे, जिससे एसईवीपी बहाली की प्रक्रिया शुरू हो सके
- अगर समय पर न हुआ, तो छात्र अमेरिका छोडऩे को मजबूर होंगे
- अन्य विश्वविद्यालय सीमित संख्या में सीटें खोल सकते हैं, लेकिन प्रतिस्पर्धा भारी रहेगी
वैश्विक प्रतिक्रिया और असर
- अमेरिका की शिक्षा प्रणाली की वैश्विक छवि पर गहरा प्रभाव
- अंतरराष्ट्रीय छात्रों में अनिश्चितता और भय
- संभावित छात्र अब कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकल्पों की ओर देख सकते हैं
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह ट्रंप की “अमेरिका फस्र्ट” नीति का शिक्षा संस्करण है
