
नई दिल्ली. Vice president Jagdeep Dhankhar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर से कार्यपालिका और न्यायपालिका के अधिकारों के बीच चल रहे विवाद पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि संविधान में हर संवैधानिक संस्था की अपनी सीमाएँ निर्धारित हैं और यही सीमा सम्मान बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने चेतावनी दी कि संस्थाओं के बीच संघर्ष लोकतंत्र को कमजोर करता है, न कि मजबूत।
संविधान में सर्वोच्च दो पद: राष्ट्रपति और राज्यपाल
धनखड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान में राष्ट्रपति और राज्यपाल दो सर्वोच्च पद माने जाते हैं। इन पदों की गरिमा और संवैधानिक जिम्मेदारियों का पालन करना बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “इन उच्च पदों पर टिप्पणी करने से पहले गहरे विचार की आवश्यकता है।”
न्यायपालिका का समर्पण: 40 साल का अनुभव
न्यायपालिका के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, “मेरे मन में न्यायपालिका के लिए अपार सम्मान है। मैंने इस क्षेत्र में 40 साल तक कार्य किया है। हमारे जज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ हैं।” उन्होंने जोर देते हुए कहा कि समन्वय और सहयोग से ही संविधान का सही तरीके से पालन किया जा सकता है।
विधायिका का कार्य न्यायपालिका के दायरे में नहीं
धनखड़ ने यह भी कहा कि जैसे विधायिका कानून बनाने का काम करती है, वैसे ही न्यायपालिका को भी विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप से बचना चाहिए। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन यह केवल तब तक ही स्वस्थ रहती है जब हम दूसरों के विचारों को भी सम्मान दें।
“चुनौतियां मुझे पसंद हैं”: उपराष्ट्रपति ने किया विमोचन
इस दौरान उपराष्ट्रपति ने लखनऊ में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की जीवनी “चुनौतियां मुझे पसंद हैं” का विमोचन किया। इस समारोह में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कई अन्य प्रमुख गणमान्य लोग भी उपस्थित थे। उपराष्ट्रपति ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सराहना भी की।
