
नई दिल्ली. nuclear weapons: दुनिया में नौ देश हैं, जिनके पास परमाणु हथियार हैं – संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इज़राइल। इनमें से रूस के पास सबसे ज्यादा, 5,580 परमाणु वारहेड्स हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका के पास 5,044 परमाणु हथियार हैं। कुल मिलाकर, दुनिया में 12,121 परमाणु हथियार हैं, और इनमें से 90 प्रतिशत सिर्फ रूस और अमेरिका के पास हैं। लेकिन, सवाल यह उठता है कि सिर्फ ये नौ देश ही परमाणु हथियार क्यों रखते हैं? क्या बाकी देशों के पास सैन्य ताकत और संसाधनों की कमी है? नहीं, दरअसल इसके पीछे एक और बड़ा कारण है। आइए, जानते हैं क्यों कुछ देशों ने परमाणु हथियारों का विकास नहीं किया।
परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने वाली संधि
कुछ देशों ने सैन्य और आर्थिक ताकत में काफी प्रगति की है, जैसे जर्मनी, दक्षिण कोरिया, जापान और ऑस्ट्रेलिया, लेकिन ये देशों ने परमाणु हथियारों के रास्ते को क्यों नहीं अपनाया? इसका कारण है परमाणु अप्रसार संधि (NPT), जिसे 1968 में अपनाया गया और 1970 में प्रभावी किया गया। यह संधि परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने और परमाणु परीक्षणों पर नियंत्रण लगाने का उद्देश्य रखती है। आज तक 190 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए हैं। इस संधि के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, चीन और फ्रांस ही परमाणु हथियार रखने के योग्य माने जाते हैं, क्योंकि इन देशों ने संधि लागू होने से पहले परमाणु परीक्षण किए थे।
भारत और पाकिस्तान ने कैसे बनाई अपनी परमाणु शक्ति?
तो, अगर परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के तहत सिर्फ पांच देशों को परमाणु हथियार रखने की अनुमति है, तो भारत, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इज़राइल ने कैसे परमाणु हथियार विकसित किए? भारत और पाकिस्तान ने कभी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए, और इस तरह वे इसके प्रतिबंधों से बाहर हैं। यही कारण है कि इन देशों ने अपने परमाणु कार्यक्रमों को विकसित किया। उत्तर कोरिया पहले इस संधि का हिस्सा था, लेकिन बाद में उसने परमाणु परीक्षणों के बाद संधि को छोड़ दिया।
वहीं, इज़राइल ने अपनी परमाणु क्षमताओं को गुपचुप तरीके से विकसित किया, बिना किसी औपचारिक घोषणा या परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार, दुनिया के कई शक्तिशाली देश जो परमाणु हथियारों के निर्माण की क्षमता रखते हैं, उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के कारण या अपनी सुरक्षा और कूटनीतिक नीतियों के तहत इसे अपनाया। यह संधि परमाणु युद्ध के खतरे को कम करने और वैश्विक शांति बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, हालांकि कुछ देश इसे दरकिनार कर अपनी स्वतंत्र परमाणु क्षमता का निर्माण कर रहे हैं। परमाणु युद्ध से बचने की दिशा में यह एक अहम कदम है, लेकिन क्या सभी देश इसे मानेंगे? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।
