
अजमेर. International Scientific Conference: महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान एवं आहार तथा पोषण संकाय द्वारा आयोजित एक भव्य अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन में प्राकृतिक औषधियों के महत्व और वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। यह सम्मेलन राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी और भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से आयोजित किया गया, जिसमें पादप आधारित न्यूट्रास्यूटिकल्स और चिकित्सा पर नवीन अनुसंधान प्रस्तुत किए गए। इस सम्मेलन का उद्घाटन विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी के मुख्य आतिथ्य में हुआ। दीप प्रज्वलन और विश्वविद्यालय के कुल गीत के साथ इसकी शुरुआत हुई। इस अवसर पर जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पी.सी. त्रिवेदी, महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडाणी, वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अरविंद पारीक, और प्रोफेसर रितु माथुर भी मंच पर उपस्थित रहे।
प्राकृतिक औषधियों पर शोध की महत्ता
विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के साथ उनका गहरा संबंध रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना के समय से लेकर अब तक यह विश्वविद्यालय शोध कार्यों और नवाचारों में नए आयाम स्थापित कर रहा है। उन्होंने कहा कि वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियां दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं और इनका समाधान केवल आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों से नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय आयुर्वेद और प्राकृतिक औषधियों के माध्यम से भी संभव है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आहार और पोषण केवल स्वास्थ्य से जुड़ा विषय नहीं, बल्कि एक वैश्विक चिंतन का मुद्दा बन चुका है। उन्होंने प्राकृतिक पौधों के चिकित्सकीय गुणों पर अनुसंधान की आवश्यकता की बात करते हुए कहा कि हमें हमारे पूर्वजों द्वारा उपयोग में लाई गई औषधियों और वनस्पतियों के गुणों को समझना चाहिए।
आधुनिक और प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों का समन्वय
देवनानी ने बताया कि पश्चिमी चिकित्सा पद्धतियों (एलोपैथी) में रोगों के उपचार का ध्यान रखा जाता है, जबकि भारतीय आयुर्वेद में आहार, दिनचर्या और जीवनशैली को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे रोगों की रोकथाम होती है। उन्होंने कहा कि प्राचीन और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों का समन्वय हमें अधिक लाभकारी परिणाम दे सकता है।
जैव विविधता और शोध में नवाचार
राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के प्रोफेसर एच. एन. वर्मा ने समाज में विज्ञान के प्रसार के लिए किए जा रहे कार्यों पर प्रकाश डाला और बताया कि विज्ञान आधारित कृषि और किचन गार्डन के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सकीय पौधों की जानकारी बढ़ाई जा रही है। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के पूर्व कुलपति प्रोफेसर पी.सी. त्रिवेदी ने कहा कि दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाले खाद्य पदार्थों के द्वारा रोगों का निवारण किया जा सकता है। उन्होंने शोधकर्ताओं से आह्वान किया कि वे भौगोलिक और पर्यावरणीय स्थितियों के अनुसार पादपों पर शोध करें, क्योंकि जैव विविधता का अभी केवल 10 प्रतिशत ही अध्ययन किया गया है।
कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य और आगामी कार्य
महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कैलाश सोडाणी ने कहा कि यह सम्मेलन शोधकर्ताओं और विज्ञान प्रेमियों के लिए एक बेहतरीन मंच है, जहां वे अपने शोध कार्यों को समाज के उपयोग में लाने के तरीके पर विचार कर सकते हैं। इस सम्मेलन में देश-विदेश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने भाग लिया और विभिन्न विषयों पर शोध प्रस्तुत किए। अगले दो दिनों में 120 शोध कार्यों पर चर्चा की जाएगी, जिसमें पौधों के रोगनिरोधी गुण, आहार और पोषण, और दैनिक जीवन में संतुलित आहार की भूमिका पर गहन चर्चा होगी।
समापन और आभार
कॉन्फ्रेंस की आयोजन समिति के प्रमुख प्रोफेसर रितु माथुर और अन्य आयोजकों ने इस आयोजन की सफलता में योगदान देने के लिए सभी प्रतिभागियों, अतिथियों और वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया। इस सम्मेलन ने न केवल प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों के महत्व को रेखांकित किया, बल्कि वैज्ञानिक शोध के माध्यम से इन पद्धतियों को समाज के उपयोग में लाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
