
जयपुर. Holi Parv 2025: राजस्थान का ऐतिहासिक और धार्मिक नगरी चारभुजा एक ऐसी जगह है, जहां आस्था, रंग और परंपनाओं का अद्भुत संगम होता है। राजसमंद जिले के गढ़बोर क्षेत्र में बसा हुआ यह स्थान, जिसकी ऐतिहासिक धरोहर लगभग 5500 साल पुरानी है, पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा हुआ है। यहीं पर पांडवों ने भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा स्थापित की थी, जो इस स्थान को आस्था का केन्द्र बनाती है। अब, हर साल फाग मेला में यहां का माहौल और भी खास हो जाता है। यह मेला होली के बाद 15 दिनों तक चलता है, और इस दौरान रंग, उल्लास और प्रेम की कोई कमी नहीं होती।
रंगों का उत्सव और आस्था का संगम
चारभुजा का फाग मेला एक ऐसा पर्व है, जो न केवल धार्मिक उत्सव बल्कि समाज के एकता और भाईचारे का भी प्रतीक बन चुका है। इस मेले में लोग अपने भेदभाव को भूलकर एक-दूसरे के साथ होली खेलते हैं। रंगों और गुलाल से लहराता माहौल, मानो आस्था और प्रेम का जीता-जागता चित्र बन जाता है।
प्रभु की बाल प्रतिमा की झूला यात्रा: एक दिव्य दृश्य
फाग मेला का एक अद्भुत आकर्षण है प्रभु की बाल प्रतिमा का झूला। सोने और चांदी की पालकी में झूलते हुए भगवान श्री कृष्ण की बाल प्रतिमा का दर्शन करना भक्तों के लिए आशीर्वाद से कम नहीं। शाम के समय 3 बजे से 6 बजे तक यह झूला यात्रा होती है, और हर समय भक्त झूले के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। जैसे ही झूला झूलता है, पूरा वातावरण गुलाल और रंगों से रंग जाता है, और भक्त प्रभु के साथ रंगों का आनंद लेते हैं।
मेला नहीं, एक सांस्कृतिक धारा
फाग मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है। पूरे मेले में भजन संध्या का आयोजन किया जाता है, जहां दूर-दराज से आई भजन मंडलियाँ प्रभु के समक्ष भजन प्रस्तुत करती हैं। इसके साथ ही, गैर नृत्य भी यहां की संस्कृति का अहम हिस्सा है। मेवाड़ी वेशभूषा में होने वाला यह नृत्य समाज की एकता और समरसता का प्रतीक बनता है।
बीरबल बादशाह की सवारी – एक और आकर्षण
मेला के दौरान जैन समाज द्वारा निकाली जाने वाली बीरीबल बादशाह की सवारी भी खास आकर्षण का केन्द्र होती है। यह सवारी रंगों की गंगा में और भी ज्यादा रौनक लाती है, और भक्तों के उत्साह को दोगुना कर देती है।
2025 में फाग मेला – एक भव्य उत्सव
2025 में, चारभुजा का फाग मेला 14 मार्च से शुरू होकर 28 मार्च तक चलेगा। साथ ही, रूपनारायण सेवंत्री का मेला भी इस दौरान 16 दिनों तक आयोजित होगा। इन दोनों मेलों की परंपराएँ और माहौल बिल्कुल मेल खाते हैं, और श्रद्धालु इस मौके का पूरा लाभ उठाने के लिए तैयार हैं।
